Book Title: Avchetan Man Se Sampark
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 189
________________ जीवन विद्या १७६ काम नहीं है । क्योंकि बौद्धिक और तार्किक व्यक्ति ही तो इनका जन्मदाता है। वह इन्हें बड़ी कुशलता से करता है। बुद्धि की एक भूमिका है। उसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता। किंतु वही अन्तिम भूमिका नहीं है । बौद्धिक व्यक्ति जितनी निपुणता से भ्रष्टाचार, संघर्ष और कलह कर सकता है, उतनी निपुणता से एक अबुद्धिमान व्यक्ति नहीं कर सकता। अपराध करने में भी बुद्धि और तर्क का योग है। प्रश्न आता है कि बुद्धि और तर्क का नियंत्रण कैसे किया जाए ? शक्ति शक्ति होती है। उन पर नियंत्रण या अंकुश कैसे हो ? यदि उस पर अंकुश न हो तो उसका उपयोग विपरीत दिशा में भी हो सकता है। शक्ति का उपयोग विकास की दिशा में भी हो सकता है और ह्रास या अपराध की दिशा में भी हो सकता है। हमारा दृष्टिकोण रचनात्मक हो, ध्वंसात्मक नहीं। हमारा व्यवहार और आचरण रचनात्मक बने। इसलिए आवश्यक होता है नियन्त्रण, अंकुश। बुद्धि को अनियंत्रित छोड़ना खतरे से खाली नहीं है। अनियंत्रित बुद्धि अनेक खतरे पैदा कर देती है। प्रश्न यही उभरता है कि अंकुश कौन बने ? भावना अंकुश बन सकती है । भावना यदि नियंत्रित होती है तो बुद्धि अपने आप नियंत्रित हो जाती है। हमारा भावनात्मक विकास बुद्धि पर अंकुश रखने में सक्षम होता है इसलिए संतुलन अपेक्षित है। जैसे-जैसे बौद्धिक विकास हो, वैसे-वैसे साथ ही साथ समानान्तर रेखा की भांति भावनात्मक विकास की रेखा भी आगे बढ़ती जाए। दोनों समानांतर चलें, कोई खतरा नहीं है। एक बुद्धि का ही यदि विकास होता है तो अनर्थ पैदा होने लग जाते हैं। आज की शिक्षा जगत् की समस्या को यदि एक शब्द में प्रस्तुत करना हो तो कहा जा सकता है कि बौद्धिक विकास और भावनात्मक विकास में संतुलन नहीं है। इसी समस्या के कारण शैक्षणिक संस्थानों में न अनुशासन का विकास है और न आत्मानुशासन का ही विकास दृष्टिगोचर होता है। यह सारा ग्रन्थि-स्राव के असंतुलन के कारण हुआ है, होता है। यदि ग्रन्थियों का स्राव संतुलित हो तो यह समस्या नहीं उभर सकती। आज जो हिंसा, अपराध, अनुशासनहीनता बढ़ रही है, यह आश्चर्य नहीं है । यदि ये न हों तो आश्चर्य हो सकता है। हमारी चेतना वहीं काम कर रही है, जहां से ये अपराध उभरते हैं। मूल को पकड़ना होगा, जहां से समस्या पैदा होती है। भावनात्मक विकास हुए बिना चरित्र की समस्या का कोई समाधान नहीं निकल सकता। क्रोध, लोभ, कपट, भय, द्वेष, घृणा, कामवासना-ये सारे भावनात्मक पक्ष हैं । जब तक इनका परिष्कार नहीं होगा तब तक समस्या का समाधान नहीं होगा। यदि इस परिष्कार के साथ ज्ञान आता है, बढ़ता है तो बहुत लाभदायी होता है। उसके बड़े-बड़े परिणाम प्राप्त होते हैं । यदि इस परिष्कार के बिना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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