Book Title: Avchetan Man Se Sampark
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 194
________________ १८४ अवचेतन मन से संपर्क अनुप्रेक्षा और सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा — इन तीन अनुप्रेक्षाओं का प्रयोग कर रहे हैं । इनके द्वारा आन्तरिक रसायनों, स्रावों पर नियंत्रण होता है । उनमें परिष्कार होता है और तब व्यक्तित्व रूपान्तरित हो जाता है । इसमें प्रयोग पक्ष प्रबल होना चाहिए। सिद्धांत का उतना -सा ज्ञान हो कि उसकी मूल्यवत्ता ज्ञात हो जाए । इसका प्रयोग विद्यार्थियों को कराया गया । कुछ दिनों के निरन्तर प्रयोग के पश्चात् विद्यार्थियों ने कहा - 'इस प्रयोग से हम लाभान्वित हुए हैं। इससे हमारी एकाग्रता बढ़ी है। पहले पढ़ने में मन नहीं लगता था । पढ़ने में उलझ जाते थे । अब पढ़ने में रस आता है । जब पढ़ते-पढ़ते मन और शरीर थक जाता है, तब दो-चार दीर्घश्वास लेते हैं या कुछ क्षणों तक कायोत्सर्ग कर लेते हैं, उससे ताजगी का अनुभव होता है ।' प्रयोग से जो लाभ होता है, वह केवल पाठ पढ़ाने से नहीं होता । ध्यान और अनुप्रेक्षा का प्रयोग आवश्यक है और तभी हम अपनी आगामी पीढ़ी को सुसंस्कृत बना सकने में समर्थ हो सकते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


Page Navigation
1 ... 192 193 194 195 196