Book Title: Avchetan Man Se Sampark
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 187
________________ जीवन विद्या १७७ है। अर्थ का ह्रास और विकास होता है। आज एक दृष्टि से धर्म शब्द संप्रदाय का द्योतक बन गया । उसका अर्थ भी कुछ बदल गया । इसलिए नए शब्द के चुनाव की अपेक्षा हुई। हमने सोचा कि जीवन विकास के लिए कोई ऐसा शब्द चुना जाए, जो धर्म की मूल भावनाओं का स्पर्श करने वाला हो । जीवन में धर्म का विकास, अध्यात्म का विकास और नैतिकता का विकास करने वाला वह शब्द हो । ये शब्द आज विवाद का विषय बन गए हैं, इसलिए नए शब्द को ढूढ़ना चाहिए जो आज के मानस का स्पर्श कर सके, पर कोई प्रतिक्रिया पैदा न करे। इन दष्टियों से सोचने पर एक शब्द जंचा और वह है-'जीवन-विज्ञान' । इसकी प्रक्रिया का किसी धर्म-विशेष या संप्रदाय-विशेष से संबंध नहीं है । इसका सीधा सम्बन्ध है, जीवन से। प्रत्येक प्राणी को जीवन-विज्ञान का अनुभव होना चाहिए । जीवन के साथ विज्ञान शब्द इसलिए जुड़ता है कि जीवन के अपने नियम हैं । प्रत्येक वस्तु के साथ नियम जुड़े हुए हैं । कुछ हमें ज्ञात हैं, कुछ अज्ञात हैं। सारे नियम हम नहीं जानते। अनेक नियम अज्ञात ही रह जाते हैं। जैसे-जैसे विकास हो रहा है, अज्ञात नियम ज्ञात होते जा रहे हैं । मनुष्य इन ज्ञात नियमों का उपयोग करता है। किन्तु जो ज्ञात हुआ है, वह एक बिन्दु मात्र है, अज्ञात का समुद्र अभी भी अछूता ही पड़ा है। ज्ञात अल्प है, अज्ञात अनन्त है। हमारे जीवन के भी अनन्त नियम हैं। जीवन विकास के अनगिनत नियम हैं। हम बहुत थोड़े नियमों को जानते हैं और जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं, जानने की सीमा भी आगे बढ़ती जाती है। हम जीवन के नियमों को जान सकें, उनका उपयोग कर सकें और सफलता की दिशा में जीवन को आगे बढ़ा सकें-यह है जीवन-विज्ञान का उद्देश्य । जीवन-विज्ञान का एक अर्थ है-जीवन के नियमों की खोज । उन नियमों की खोज, जिनके द्वारा दृष्टिकोण का परिष्कार किया जा सकता है, व्यवहार और आचरण का रूपान्तरण किया जा सकता है।। जीवन के तीन मुख्य पक्ष हैं-ज्ञानात्मक पक्ष, भावनात्मक पक्ष और क्रियात्मक पक्ष । हम जानते हैं, यह हमारा ज्ञानात्मक पक्ष है। हम भावना से जुड़े हुए हैं, यह हमारा भावनात्मक पक्ष है। हम आचरण करते हैं, यह हमारा क्रियात्मक पक्ष है। हमारा प्रयत्न रहता है कि ये तीनों पक्ष परिष्कृत हों। जीवन की सारी समस्याएं अपरिष्कृत दृष्टिकोण, चिन्तन और आचरण से पैदा होती हैं। समस्या का एक कारण है अपरिष्कृत दृष्टिकोण । यह मिथ्या दृष्टिकोण का वाचक है। आज दृष्टिकोण सम्यक् नहीं है । आदमी ने अनेक एकांगी दृष्टिकोण पाल रखे हैं। जब दृष्टिकोण एकांगी होते हैं तब मिथ्या धारणाओं और भ्रान्तियों को पलने में सुविधा हो जाती है। प्रश्न है---क्या दृष्टिकोण और आचरण का परिष्कार किया जा सकता है ? क्या इनमें परिवर्तन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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