Book Title: Avchetan Man Se Sampark
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 185
________________ जीवन विद्या इस दुनियां मे दो तत्त्व बहुत स्पष्ट हैं। एक है चेतन और दूसरा है अचेतन । अचेतन में न ज्ञान होता है और न जीवन होता है। चेतन में ज्ञान भी है और जीवन भी है। हम चेतना के साथ जीते हैं, शरीर के साथ जीते हैं । शरीर और चेतना के मध्य भाग का नाम है-प्राणशक्ति, 'वाइटल फोर्स' 'वाइटल एनर्जी ।' यह एक संबंध सेतु है। यह प्राणशक्ति ही जीवन है, जीवनी शक्ति है। उस प्राणशक्ति के आधार पर हम श्वास लेते हैं, चलते हैं, बोलते हैं, आहार करते हैं, चिन्तन और मनन करते हैं। हमारी सारी प्रवृत्तियां प्राणशक्ति के आधार पर होती हैं । वही हमारा जीवन है। हम जीवित प्राणी हैं, जी रहे हैं। हम शरीर, इन्द्रियां, मन और बुद्धि का प्रयोग करते हैं। जीवन एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जीवन का विकास एक विशेष प्रक्रिया है। प्रत्येक प्राणी जो जीवन जीता है, वह विकास की भूमिका तक नहीं पहुंच पाता। विकास के लिए चेतना के विशेष आयाम उद्घाटित होने चाहिए। जब तक चेतना के विशेष आयाम उद्घाटित नहीं होते, तब तक जीवन जीवन रहता है, वह विकासशील नहीं बनता। विकास करने के लिए मनुष्य को ही विशेष सुविधा प्राप्त है। उसका नाड़ी संस्थान, ग्रन्थि-संस्थान और मस्तिष्क-ये तीनों बहुत विकसित हैं। उनमें अनेक संभावनाएं छुपी हुई हैं। मनुष्य उन संभावनाओं का उपयोग कर विकास की उच्चतम भूमिका पर पहुंच सकता है। विकास का आधारभूत तत्व है-प्रज्ञा। बुद्धि से आगे होती है प्रज्ञा। इसे अन्तर्दृष्टि और अन्तःप्रेरणा भी कहा जा सकता है। यही विकास का मूल आधार है । मनुष्य और पशु में एक अन्तर है मानसिक विकास का और दूसरा अन्तर है भावनात्मक विकास का। पशु में शारीरिक शक्ति होती है पर उसमें मानसिक विकास उतना नहीं है जितना मनुष्य में है। उसमें कल्पना शक्ति नहीं होती। मनुष्य में कल्पनाशक्ति होती है । पशु कभी कल्पना नहीं कर सकता कि उसे सूक्ष्म शक्तियों का विकास करना है । वह ऐसा सोच ही नहीं सकता । वह हजारों वर्षों से भार ढोता रहा है और आज भी ढो रहा है। बैल हजारों वर्षों से गाड़ी से जुता चल रहा है. और आज भी वही काम कर रहा है । वह कभी नहीं सोचता कि इससे आगे भी विकास करना है । उसमें कल्पना-शक्ति का अभाव है । यही विकास की सबसे बड़ी बाधा है। . मनुष्य में प्रज्ञा है, कल्पनाशक्ति हैं। वह. सोचता है कि मुझे आगे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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