Book Title: Avchetan Man Se Sampark
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 133
________________ अतीत और भविष्य का संपर्कसूत्र १२३ इन वृत्तियों के क्षीण होने पर, मनुष्य के निर्विकल्प होने पर शरीर धारण संभव नहीं है । निर्विकल्पता परिणाम है । साधना करते-करते, एकाग्रता का अभ्यास करते-करते, चित्त पर और नाड़ी संस्थान पर अभ्यास करते-करते एक निष्पत्ति आती है, एक बिन्दु आता है, जहां सारी वृत्तियां समाप्त हो जाती हैं, सारे संस्कार और सारी संज्ञाएं समाप्त हो जाती हैं, निर्विकल्प अवस्था प्राप्त हो जाती है । इस स्थिति में शरीर ज्यादा नहीं टिकता । बस, उतना ही टिकता है जितना कि कोई संस्कार बच गया । उस संस्कार के मिटते ही यह शरीर छूट जाता है, आत्मा अलग, शरीर अलग, मोक्ष अवस्था उपलब्ध हो जाती है । निर्विकल्पता शब्द बहुत मोहक है हम इसकी मोहकता में फंस जाते हैं । मुझे लगता है, लोग भटक जाते हैं । हम भटकाव में न जाएं, यथार्थं को जानकर चलें । इन संज्ञाओं, वृत्तियों और संस्कारों को पतला किया जा सकता है । किन्तु एक साथ समाप्त नहीं किया जा सकता । तीन बातें हैं-एक है मोटाई, एक है पतलापन और एक है क्षीणता। हमारी जितनी वृत्तियां, आवेग, आवेश और संस्कार हैं, उनकी मोटाई होती है, वह चंचलता पैदा करती है । यदि ये सब क्षीण हो जाएं तो बात समाप्त हो जाती है अवस्था है | मोटाई पूरी अवस्था है । हमें बीच का संस्कारों को कैसे पतला किया जा सके- यह सोचना जरूरी है । । यह बहुत आगे की मार्ग चुनना है । इन चाहिए | पतला करना एक तपस्वी साधु था । आचार्य के पास आकर बोला - गुरुदेव ! तपस्या करना चाहता हूं । गुरु ने आदेश दे दिया । तपस्या के बाद आकर बोला -- गुरुदेव ! अब आपका क्या निर्देश है ? गुरू ने कहा- पतला करो । उसने दो उपवास और किए। फिर पूछा । गुरू ने कहा- पतला करो । वह तपस्या करता रहा । पूछता रहा । गुरू 'पतला करो' निर्देश देते रहे । शरीर पतला हो गया। मांस सूख गया, चमड़ी लटक गई । पचास दिन के बाद आया । पूछा – गुरुदेव ! अब क्या निर्देश है ? आचार्य बोले- 'पतला करो।' यह सुनते ही उसका आवेग बढ़ा और उसने तोड़कर नीचे गिरा दी। वह बोला — गुरुदेव ! आप करो, पतला करो' --- और कितना पतला करूं ? आप देखते नहीं, शरीर सूख कर कांटा हो गया है, अंगुली एक झटके में टूट कर गिर पड़ी। और क्या, कितना पतला करूं ? गुरु बोले- 'वत्स ! समझे नहीं । तूने पचास दिन का उपवास किया । पर गुस्सा उतना ही प्रबल है । गुस्से में आकर तूने एक झटके अंगुली एक झटके में बार-बार कहते हैं 'पतला अंगुली तोड़ दी । इसीलिए मैं कहता हूं, अपने आवेग को, उत्तेजना को, कषाय को, संस्कार को पतला करो, क्षीण करो, प्रतनु करो ।' वृत्तियों को पतला करना है और नाड़ी-संस्थान पर नियंत्रण स्थापित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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