Book Title: Avchetan Man Se Sampark
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 177
________________ नैतिक चेतना १६७ कि वह पूरा नैतिक नहीं है। नैतिक होने के लिए इन पांचों की समन्विति अत्यन्त आवश्यक है। नैतिक चेतना को अनेक कोणों से देखना होगा। एक कोण के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि नैतिक चेतना जाग गई। जिसमें पांचों कोण जाग जाते हैं, उसमें नैतिक चेतना का जागरण होता है। जब पांचों कोण समन्वित होते हैं तब पूरा चित्र बनता है। जब ये पांचों रेखाएं उभरती हैं तब नैतिक व्यक्तित्व का चित्र अंकित होता है। जिसमें नैतिक चेतना जाग गई, वह ऐसे व्यक्तित्व का स्वामी होगा कि वह प्रामाणिक व्यवहार करेगा, मृदु व्यवहार करेगा, निश्छल व्यवहार करेगा, निष्पक्ष व्यवहार करेगा और विनम्र व्यवहार करेगा । जब ये पांचों व्यवहार समन्वित रूप में हमारे सामने आते हैं तब नैतिक चेतना की जागृति प्रत्यक्ष होती है। आज नैतिकता की अधिक चर्चा कानूनों के क्षेत्र में होती है । जो इन्कमटैक्स पूरा नहीं चुकाता, वह अनैतिक है। जो कानूनों का पूरा पालन नहीं करता, वह अनैतिक है। यदि सारी नैतिकता को कानून के साथ बांध दिया जाए तो फिर चेतना समाप्त हो जाती है। फिर चेतना के विकास का कोई अवकाश ही नहीं रहता। नैतिकता ढूंढी जाएगी इन न्यायाधीशों, अदालतों और वकीलों के कटघरों में । बस, वे लोग जो निर्णय देंगे जिन्हें सही ठहराएंगे, वे नैतिक और जिनको गलत ठहरा देंगे, वे अनैतिक । बहुत बार ऐसा होता है कि न्यायाधीश नैतिक व्यक्ति को अनैतिक मान सकता है, ठहरा सकता है । एक वकील अनैतिकता को तर्कों के आधार पर नैतिकता के रूप में प्रस्तुत कर सकता है । कानून-कानून है। उनकी अपनी परिभाषाएं हैं, सीमाएं हैं। वहां नैतिकता कैसे जुड़ सकती है ? नैतिक चेतना का सम्बन्ध कैसे जुड़ सकता है ? यद्यपि कानून की पृष्ठभूमि नैतिकता है पर जहां केवल कानून की बात है, केवल साक्षी की बात है वहां नैतिकता क्या कर सकती है ? वहां केवल गवाही चाहिए। प्रत्येक्ष-दर्शन भी वहां बेकार है। आंखों देखी घटना का भी वहां बहुत मूल्य नहीं होता। आंखों से देखा जितना महत्वपूर्ण नहीं है, उतना महत्त्वपूर्ण है साक्ष्य । साक्षी चाहे झूठा ही खड़ा क्यों न किया गया हो, उसका महत्त्व हो जाता है । जहां साक्ष्य परोक्ष होता है, परोक्ष पर ही सारा भरोसा होता है तो उसे नैतिक चेतना के साथ जोड़ने में कठिनाई होती है । नैतिक चेतना प्रत्यक्ष का संवेदन है, अपना संवेदन है। नैतिक चेतना उस व्यक्ति में जागती है जिसमें संवेदनशीलता जाग जाती है। नैतिकता का आधार बनता है-संवेदनशीलता । नैतिकता की पृष्ठभूमि में होता है विश्वास और परिणाम में होती है-संवेदनशीलता। जब संवेदनशीलता जाग जाती है तब व्यक्ति अनैतिक नहीं रह सकता। आज सबसे बड़ा कार्य यह है कि हम विद्यार्थियों में संवेदनशीलता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196