Book Title: Avchetan Man Se Sampark
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 175
________________ नैतिक चेतना १६५ नैतिक चेतना के जाग जाने पर जो व्यवहार होगा वह प्रामाणिक ही होगा । नैतिकता का संबंध दो से होता है और आध्यात्मिकता का संबंध एक से होता है । नैतिकता द्विष्ठ है— दो पर आधृत है । अकेले आदमी के समक्ष नैतिकताअनैतिकता का कोई प्रश्न नहीं होता । जब दो होते हैं तब प्रश्न होता है कि कैसा व्यवहार किया जाए । नैतिक व्यक्ति बेईमानीपूर्वक व्यवहार नहीं करेगा । वह पूरा प्रामाणिक व्यवहार करेगा । नैतिक चेतना का दूसरा सूत्र है - मृदु व्यवहार । कुछ व्यक्ति क्रूर होते हैं। वे पशुओं तथा आदिमयों के साथ ऐसा कठोर व्यवहार करते हैं कि उनकी क्रूरता प्रत्यक्ष हो जाती है। जहां क्रूरता है वहां नैतिकता का विकास कैसे हो सकता है ? आदमी व्यापार में कितना क्रूर व्यवहार करता है ? दहेज की भूख क्या क्रूर व्यवहार नहीं है ? प्रतिवर्ष सैकड़ों मासूम afari दहेज की बलिवेदी पर आहूत होती हैं । जब ये सारी क्रूरताएं चलती हैं तब लगता है कि नैतिकता की बात है कहां ? हमने सबसे बड़ी भूल यह की है कि हमने नैतिकता को अलग मान लिया और धर्म को अलग मान लिया । परलोक को सुधारने के लिए धार्मिक होना जरूरी है, मोक्ष और स्वर्ग के लिए धार्मिक होना जरूरी है पर नैतिक होना जरूरी नहीं है । आदमी नैतिक हो या न हो, धर्म करने वाला हो, पूजा-पाठ करने वाला हो, जाप करने वाला हो फिर वह दूकान और घर पर कैसा ही व्यवहार करने वाला क्यों न हो । वह मानता है कि व्यवहार कैसा भी हो, गलती होगी तो भगवान के भजन से सारा पाप धुल जाएगा। एक-दो बार भगवान की आरती करेंगे और बस, पाप से छुटकारा मिल जाएगा। फिर कल से नई शुरूआत, नया चिन्तन, नई प्रवृत्ति | जहां इस प्रकार की धारणा बन जाती है कि धर्म अलग, अध्यात्म और धर्म की चेतना अलग, नैतिक चेतना अलग वहां नैतिक चेतना के विकास की चर्चा करने में संकोच होता है । परिवर्तन करना है । आज चेतना का आमूलचूल नैतिक चेतना का तीसरा सूत्र है । निश्छल व्यवहार | आज का अधिकांश व्यवहार वंचनापूर्ण है । सर्वत्र ठगाई, ठगाई और ठगाई है । दूसरों के साथ होने वाली ठगाई की बात छोड़ दें । आज पिता अपने पुत्र को ठगाने की कोशिश कर रहा है और पुत्र अपने पिता को ठगने के लिए प्रयत्न करता है । क्योंकि जब नैतिक चेतना का जागरण नहीं होता तब अर्थ की चेतना इतनी प्रबल हो जाती है कि अर्थ के सिवाय कुछ नहीं दिखता । एक प्रकार के वे लोग हैं, जो रात्र्यन्ध - रात को नहीं देख पाते । एक प्रकार के वे लोग हैं जो दिवान्ध - दिन में नहीं देख पाते । आज का आदमी अर्थाध है । उसे अर्थ के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दिखाई देता । पुत्र पिता को, पिता पुत्र को, पति पत्नी को और पत्नी पति को, भाई भाई को, मित्र मित्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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