________________
१६०
अवचेतन मन से संपर्क
आती । आज जो कुछ हो रहा है, वह चेतना को न बदलने के कारण हो रहा
प्रश्न होता है, हम चेतना को कैसे बदलें ? यह कोई आसान मार्ग
नहीं है।
हमारे संघ में संविभाग का प्रयोग चलता है । कपड़ा, भोजन, स्थानइन सबका संविभाग होता है। कपड़ा पांच के लिए पर्याप्त है, पर लेने वाले हैं पच्चीस । सबको आवश्यकता है। किसे दें और किसे न दें। एक को मिले और दूसरे को न मिले तो पक्षपात का आरोप लग जाता है । इस स्थिति में चिट्ठी की प्रणाली चलती है। पच्चीस व्यक्तियों के नाम लिखकर पच्चीस चिट्ठियां डाल दी जाती हैं। पांच चिट्टियां किसी अज्ञात व्यक्ति से उठवाई जाती हैं और उनमें जिनका नाम होता है, उन्हें वह वस्त्र या पात्र मिल जाता है। दूसरे को बोलने का अवकाश ही नहीं रहता। इसी प्रकार भिक्षा में चार रोटियां मिलती हैं और मुनि आठ होते हैं तो आठों को आधी-आधी रोटी मिलेगी-ऐसा नहीं होता कि बड़े को एक पूरी रोटी मिल जाए और छोटों को आधी से भी कम मिले।
हमारे संघ की ही एक घटना है । मुनि विहार कर रहे थे। पानी कम मिला । गर्मी का मौसम था। सबको प्यास लग रही थी। मुनि अधिक और पानी कम । एक व्यवस्था दी गई-प्रत्येक साधु माप-माप कर पानी पीए । एक बार उतना पानी पीने के पश्चात् तीन घंटा तक दुबारा पानी न पीए। व्यवस्था हो गई। सभी साधु वैसा करने लगे। एक साधु को अधिक प्यास थी। व्यवस्था को भूल गया और अधिक पानी पी लिया। दूसरे मुनियों ने टोका और व्यवस्था की बात बतलाई। उसने कहा--प्यास के लिए पानी है या पानी के लिए प्यास है ? पानी भी कभी माप-माप कर पीया जाता है ? आचार्य ने कहा-बात पानी की नहीं है। बात है व्यवस्था की। तुमने व्यवस्था को भंग किया है, संविभाग की व्यवस्था का अतिक्रमण किया है, इसलिए तुम्हारा संघ से संबंध-विच्छेद करते हैं, तुम संघ में रहने के अधिकारी नहीं हो।
___ संघीय जीवन या सामाजिक जीवन में वही व्यक्ति अपने अस्तित्व को बनाए रख सकता है, जिसमें सामाजिक चेतना जागृत है । कष्ट है तो सबको है। प्यासे रहना है तो सब रहें। पानी पीना है तो सब पीएं। पांच भरपेट पानी पीएं और दस टुकर-टुकर देखते रहें, यह नहीं हो सकता। जब सामुदायिक चेतना जाग जाती है तब अनेक समस्याएं स्वतः समाहित हो जाती हैं। ऐसी चेतना जाग सकती है, यदि सम्यक् प्रयत्न हो तो।
प्रेक्षा का प्रयोग अध्यात्म को जगाने का प्रयोग है। पर साथ ही साय यह सामुदायिक चेतना को जगाने का प्रयोग है। पुराने जमाने में यह माना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org