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सामाजिक चेतना
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जाता था कि ध्यान साधना करनी हो तो किसी गुफा में जाकर करनी चाहिए। ध्यान के लिए उपयुक्त स्थान है कन्दरा, एकान्त स्थान । उस समय ग्रुप मेडिटेसन की बात नहीं थी। आज सामूहिक ध्यान पर बल दिया जा रहा है क्योंकि जो सशक्त वलय सामूहिक ध्यान में बनता है, वह अकेले के ध्यान में नहीं बनता। पचास व्यक्ति साथ में ध्यान करते हैं और उनमें यदि एक दुर्बल होता है तो उसे दूसरों की ऊर्जा का सहारा मिल जाता है और उसका ध्यान भी अच्छा हो जाता है। अकेले में केवल एक ही व्यक्ति की शक्ति काम करती है और समूह में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से सहयोग पाता है।
प्रेक्षा ध्यान के माध्यम से हम इस सचाई का अनुभव करें कि केवल आध्यात्मिक चेतना ही हमारे लिए पर्याप्त नहीं है, नैतिक चेतना और सामाजिक चेतना भी अपेक्षित है । जीवन का एक पहलू है-आध्यात्मिकता । परन्तु सारा जीवन अध्यात्म से संचालित नहीं हो सकता । उसमें नैतिक चेतना और सामाजिक चेतना भी चाहिए। जब सामाजिक चेतना जागृत होगी तो अध्यात्म चेतना को जागृत होने का भी मौका मिलेगा। यदि सामाजिक चेतना ही जागृत नहीं है तो अध्यात्म-चेतना को जागने का अवसर ही नहीं मिलेगा। यदि हम सामाजिक चेतना को जगाने का उपयुक्त प्रयत्न करते हैं तो हमें समाधान की सशक्त श्रृंखला मिल सकती है, जिसके द्वारा हम नैतिक और आध्यात्मिक चेतना के जागरण की दिशा में प्रस्थान कर सकते हैं।
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