Book Title: Avchetan Man Se Sampark
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 172
________________ नैतिक चेतना प्रेक्षा ध्यान की साधना प्रकाश और ज्योति की साधना है। अंधकार और प्रकाश-दोनों जीवन के सहचर हैं। कभी प्रकाश सामने आता है और कभी अंधकार । अंधकार पूरा का पूरा मिट जाए, इसकी सम्भावना नहीं की जा सकती। यदि प्रकाश है तो अंधकार को होना ही होगा और यदि अंधकार है तो प्रकाश को होना ही होगा । एक हो, यह प्रकृति को मान्य नहीं है । यह प्रकृति के अनुकूल भी नहीं है। दोनों का होना अनिवार्य नियम है। आदमी चिंतनशील प्राणी है। वह परिवर्तन ला सकता है। परिवर्तन की बात मन को आकर्षित करने वाली सबसे बड़ी बात है। जो व्यक्ति जिस रूप में है, उसी रूप में रहना यदि पसन्द करता है तो वह अंधकार में सबसे अधिक डूबा हुआ होगा। जिसके मन में परिवर्तन की भावना नहीं जागती, जो बदलने की बात नहीं सोचता, वह इस दुनिया का सबसे बड़ा अभागा आदमी है । प्रत्येक व्यक्ति को निरन्तर बदलने की बात सोचनी चाहिए। बदलने की भिन्न-भिन्न भूमिकाएं हैं। भूमिका शब्द बहुत ही महत्त्वपूर्ण शब्द है । हमारे जीवन में अनेक भूमिकाएं हैं। आदमी मकान में भी अनेक भूमिकाएं बना लेता है । प्राचीनकाल में सम्राट् या चक्रवर्ती के मकान अनेक भूमिकाओं के होते थे। उनके मकान बयालीस भौम, सप्त भौम आदि अनेक प्रकार के होते थे । आज का शिल्प और आगे बढ़ा और 'मल्टी स्टोरी बिल्डिंग' खड़े हो रहे हैं । उनके सैकड़ों भूमिकाएं होती हैं । वे शतभौम होते हैं। ___ जीवन विकास की अनेक भूमिकाएं हैं। आरोहण, आरोहण और आरोहण-आगे से आगे चढ़ना, बढ़ना। आरोहण करना, चढ़ना, बढ़ना, बदलना, रूपान्तरण करना-ये सारे चिंतनशील व्यक्तित्व के सृजनात्मक दृष्टिकोण हैं। जिसका दृष्टिकोण सृजनात्मक नहीं होता, वह एक स्थिति में पहुंचकर संतोष मान लेता है। संतोष बहुत अच्छा होता है तो बहुत बुरा भी होता है। एक सूक्त है-असन्तुष्टी द्विजो नष्ट: संतुष्टश्चापि पार्थिवःब्राह्मण यदि असन्तुष्ट होता है तो नष्ट हो जाता है और राजा यदि संतुष्ट होता है तो नष्ट हो जाता है। जो ब्राह्मण है, त्यागी है, संन्यासी है, उसे संतोषी होना जरूरी है और राजा को असंतोषी होना जरूरी है। असंतोष प्रगति का सूचक है। यह आगे बढ़ाने वाला है। परिवर्तन के क्षेत्र में यदि आदमी संतोष कर बैठे तो अनेक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। मनुष्य ने जो बदलने की भावना निर्धारित की, वह विवेकपूर्ण प्रयत्नों में सबसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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