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जीवन विज्ञान
मौसम बदलता रहता है। कभी गर्मी और कभी सर्दी, कभी बसन्त और कभी पतझड़। यह प्रकृति का अटूट नियम है। एक जैसा मौसम कभी नहीं रहता। एक जैसे दिन नहीं रहते, एक जैसी परिस्थिति नहीं रहती।
आदमी शक्तिशाली प्राणी है। वह हर मौसम को सह लेता है । वह सर्दी और गर्मी को महता है, वर्षा और तूफान को सहता है, बसन्त और पतझड़ को सहता है। जीवित वह होता है, जिसमें सहने की शक्ति होती है । जिसमें बदलती हुई परिस्थिति को, बदलती हुई मौसम को सहने की क्षमता नहीं होती, वह जीवित नहीं हो सकता। एक मौसम में जीने वाला मौसमी प्राणी हो सकता है, स्थायी प्राणी नहीं हो सकता। मनुष्य स्थायी प्राणी है, मौसमी प्राणी नहीं है । वह हर मौसम को बर्दाश्त करता है, झेलता है और अपनी जीवनी शक्ति को बनाए रख सकता है । यह सहन करने की शक्ति जिसे प्राप्त है, दही जीता है। यह जीवन का पहला लक्षण है।
सहनशक्ति के विकास की अत्यन्त आवश्यकता है। कोई भी आदमी जैसा है, वैसा रहना नहीं चाहता। वह विकास करना चाहता है, आगे बढ़ना चाहता है। वह परिस्थितियों से जूझते हुए, संघर्षों को झेलते हुए आगे बढ़ना चाहता है। इस उपक्रम से परिस्थितियां बदल जाएंगी। एक परिस्थिति बदलती है तो दूसरी आ जाती है। परिस्थितियों का सर्वथा अनागमन नहीं हो सकता। इस परिस्थिति में भीतरी शक्ति का जागरण संभव है, आवश्यक
__ अमावस्या का दिन । सोमवार । संकड़ों यात्री नदी में स्नान करने गए । सभी स्नान कर रहे हैं। एक आदमी तट पर बैठा-बैठा कुछ सोच रहा है । कुछ लोग स्नान करके बाहर निकले । एक ने पूछा---'तुम भी तो स्नान करने आए हो। फिर तट पर क्यों बैठे हो ? उतरो नदी में और स्नान का आनन्द लो।' वह बोला-'मैं नदी में नहीं उतरूंगा।' उसने पूछा- क्यों ? फिर यहां आए ही क्यों ? वह बोला-'जब तक लहरें उठ रही हैं, टकरा रही हैं, थपेड़े मार रही हैं तब तक मैं पानी में नहीं उतरूंगा। जब सभी तरंगें शान्त हो जाएंगी तब मैं स्नान करने उतरूंगा।'
__उस आदमी ने कहा-भले आदमी ! पानी में तो लहरें उठती ही रहेंगी, ये कब शांत होने वाली हैं ? स्नान करना हो तो पानी में उतर
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