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अवचेतन मन से संपर्क
साधना का उपक्रम नहीं है यह कोई हिमालय की कन्दरा में बैठकर ध्यान करने जैसी साधना का उपक्रम नहीं है, यह कोई अनोखा अनुष्ठान नहीं है कि हम छह महीने तक इस आसन से उठेंगे ही नहीं या छह महीने तक खड़े ही रहेंगे। यह तो जीवन की सर्वमान्य प्रक्रिया है कि रोज जो मैल जमता है उसको रोज साफ कर दो। एक दिन का विलम्ब मत करो। मैल आज आया, आज ही उसे हटा दो। अन्यथा जमते-जमते वह मैल चेतना पर इतना अधिकार कर लेता है कि उससे विलग नहीं हो पाता।
ध्यान की यह सर्व सामान्य प्रक्रिया प्रत्येक व्यक्ति के लिए जरूरी है। यह नहीं कि मन में अध्यात्म की विशेष प्रेरणा जागे और वह ध्यान करे, यह आवश्यक नहीं है। एक बार साध्वियों की गोष्ठी में मैंने पूछाक्या ध्यान करना आवश्यक है ? किसी साध्वी ने कहा-आवश्यक है । किसी ने कहा-इतना क्या आवश्यक है ? किसी ने कहा-ध्यान के प्रति रुचि नहीं है । किसी ने कुछ कहा और किसी ने कुछ कहा । प्रश्न एक था, उत्तर अनेक थे। मैंने पूछा-साधु जीवन के लिए पांच महाव्रतों को पालना आवश्यक है या नहीं ? उत्तर मिला-अत्यन्त आवश्यक है । मैंने पूछा- क्या तीन गुप्तियों की साधना अनिवार्य नहीं है ? सबने एक ही उत्तर दियाअत्यन्त अनिवार्य है गुप्तियों की साधना । मैंने कहा-गुप्तियों के बिना महाव्रतों की आराधना नहीं हो सकती। पांच महाव्रत पालने अनिवार्य हैं तो गुप्तियों की साधना भी अनिवार्य है। जब गुप्तियां सम्यक नहीं होती, तब न मन पर अनुशासन सधता है, न वाणी और शरीर पर अनुशासन सधता है । तीनों गुप्तियां नहीं हैं तो अहिंसा का विकास कैसे संभव होगा ? मन पर अनुशासन हुये बिना सत्य का महाव्रत कैसे पाला जाएगा? साधक ने गलती कर दी। किसी ने पूछा- तुमने गलती की ? यदि मन गुप्ति और वचनगुप्ति सधी हुई नहीं है तो साधक कहेगा-मैंने कोई गलती नहीं की। झूठ बोलने में संकोच नहीं होगा । झूठ बोलने में संकोच तब होता है जब मनगुप्ति और वचनगुप्ति सधी हुई होती है। यह कभी संभव ही नहीं है कि तीन गुप्तियों की साधना के बिना पांच महाव्रतों की साधना सम्यक हो सके ।
____ मैंने कहा-गुप्ति की साधना उतनी ही अनिवार्य है जितनी पांच महाव्रतों की साधना अनिवार्य है तो प्रेक्षाध्यान क्या है ? क्या प्रेक्षाध्यान गुप्तियों की साधना से अतिरिक्त है ? मनोगुप्ति, वाक्गुप्ति और कायगुप्ति की साधना के लिए है प्रेक्षाध्यान । प्रेक्षाध्यान का अभ्यास इसलिए है कि हम उसके माध्यम से मन, वचन और काया को संवृत कर सकें, गुप्त कर सकें। संवत करने की प्रक्रिया का अभ्यास अपेक्षित होता है। गुप्तियों की साधना का व्रत होने मात्र से साधना नहीं हो जाती। उसके लिए निश्चित प्रक्रिया से गुजरना होता है, अभ्यास करना होता है । यदि हमें मन को वश में करना
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