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भाव और अध्यात्मविद्या
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बनना चाहिए, योगी बनना चाहिए। केवल मोक्ष प्राप्ति के लिए नहीं, शांतिमय और सुखमय जीवन जीने के लिए भी योगी बनना आवश्यक है।
आज प्रत्येक व्यक्ति के पास इतने अधिकार आ गए हैं कि अध्यात्म के बिना उन पर नियंत्रण नहीं रखा जा सकता। पुराने जमाने में जो अधिकार एक राजा के होते थे, वे अधिकार आज एक सामान्य व्यक्ति के पास हैं। इन अधिकारों का दुरुपयोग न हो, शक्तियों और वैज्ञानिक उपलब्धियों तथा उपकरणों का दुरुपयोग न हो, सदुपयोग हो इस दृष्टि से भी आज पूरे समाज को ध्यानी वनने की आवश्यकता है। शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक समस्याओं का एकमात्र समाधान ध्यान है, अध्यात्म है। जो व्यक्ति केवल क्रियाकांडों और उपासनाओं के द्वारा धर्म के हृदय तक पहुंचना चाहते हैं, वे भटक जायेंगे-'नो हब्बाए नो पाराए'-वे न इधर के रहेंगे और न उधर के रहेंगे।
आज यह सद्यस्क अपेक्षा है कि हम सतह में न रहें। सागर के बीच गहरी डुबकियां लें । डुबकियां लेने वाला अमूल्य रत्नों को उपलब्ध कर सकता है।
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