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यथार्थवादी दृष्टिकोण की पहली रेखा है अहंकार । वह अपने आपको एक रूप में देखता है, दूसरे को दूसरे रूप में । मैं कुलीन हूं, यह कुलीन नहीं हैं । मैं स्पृश्य हूं, यह अस्पृश्य है । ये सारी भेद रेखाएं अहंकार के आधार पर खिची हुई हैं। पूरा समाज इन रेखाओं से भरा पड़ा है। कभी-कभी बड़ा अश्चर्य होता है। जब हम जातिवाद की रेखाओं पर सोचते हैं तब लगता है-कितना विभक्तिकरण हुआ है इससे ? विभाग ही विभाग । प्रारंभ में समाज चतुर्वर्ग--चार वर्गों में ही विभक्त था। उसके अवान्तर विभाग और भेद रेखाएं इतनी हो गईं कि आदमी कहां है, वेचारे का पता ही नहीं चलता। आदमी तो कभी पहचाना ही नहीं जाता । एक जाति में भी इतनी अवान्तर जातियां हैं कि आदमी उसके नीचे दबा पड़ा है, उसका पता ही नहीं है ।
दूसरा तत्त्व है-~ममकार । यह भी बांटता है आदमी को। ममकार का अर्थ है-मेरा । जिसके साथ 'मेरा' शब्द जुड़ गया, वह भिन्न वस्तु हो गई और जिसके साथ 'तेरा' शब्द जुड़ गया, वह भिन्न वस्तु हो गई । आदमी भी अलग हो गया । 'मेरा बेटा-बेटा अलग हो गया, 'मेरा' अलग हो गया । वह भी बंट गया। 'मेरा घर और तेरा घर'---एक दीवार खिच गई। दो सगे भाई भी जब 'मेरे' 'तेरे' में होते हैं तो बीच में दीवार खिंच जाती है।
- अहंकार ने व्यक्ति को बांटा है। ममकार ने भी व्यक्ति को बांटा है। इस प्रकार भौतिक व्यक्तित्व का अर्थ होता है व्यक्तियों को तोड़ना, बांटना।
आध्यात्मिक व्यक्ति तोड़ता नहीं, जोड़ता है। वहां तोड़ने वाला कोई तत्त्व नहीं होता। इसी सचाई को प्रकट करने के लिए यह घोषणा की गई थी.---'एक्का मणुस्सजाई'--मनुष्य जाति एक है। भौतिक मुंह से वह शब्द कभी उच्चरित नहीं हो सकता । जिस मंच से यह घोषणा हुई, वह आध्यात्मिक मंच था। वहां व्यक्ति-व्यक्ति में कोई भेद का अनुभव नहीं किया गया। सभी मनुष्यों को एक ही रूप में देखा और जाना गया। मनुष्य जाति के सिवाय कोइ दूसरी जाति ही नहीं है।
. आध्यामिक व्यक्तित्व में पदार्थ का भोग होगा। अध्यात्मिक व्यक्तित्व खाएगा, पीएगा, कपड़े भी पहनेगा, मकान में भी रहेगा । यह सब कुछ करेगा, पर तोड़ेगा नहीं। वह यह कभी नहीं कहेगा--मेरा कपड़ा, मेरा मकान । वह कहेगा-इस मकान में मैं अभी रह रहा हूं। यह कपड़ा मेरे पहनने के काम आ रहा है। गावों में जब लोगों से पूछते हैं-यह मकान तुम्हारा है ? घर का मालिक कहता है-'मकान किसका ! भगवान् का है महराज ; मैं यहां रहता हूं।' इस कथन के पीछे एक सिद्धान्त है, ममत्व नहीं है । मकान किसका हो सकता है ? किसी का नहीं हो सकता। यह सचाई है--आज तक भी यह संपदा और भूमि किसी की नहीं बनी। इसीलिए कहा जाता है, यह संपदा और भूमि शाश्वत कन्याएं हैं, कुंआरी कन्याएं हैं। आज तक इनका पाणिग्रहण
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