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अवचेतन मन से सम्पर्क
देहाध्यास प्रबल होता है, देहासक्ति का प्राबल्य होता है तब शरीर के प्रति मूर्छा जागती है और भौतिक अस्तित्व के प्रति आसक्ति जाग जाती है। तब उसके सामने केवल भौतिक अस्तित्व ही दृश्य होता है, वह दूसरी बात को देख ही नहीं पाता।
कायोत्सर्ग का प्रयोग चैतन्य के जागरण का प्रयोग है। पैर के अंगूठे से लेकर सिर तक, प्रत्येक अवयव के प्रति जाग जाना, शरीर के प्रति जागृत हो जाना, शरीर की प्रकृति को समझ लेना, शरीर की सचाइयों को जान लेना, प्राणधारा को जान लेना-यह सारी फलश्रुति है कायोत्सर्ग की। जो व्यक्ति इतना जागरूक हो जाता है, वह साक्षात्कार की भूमिका में चला जाता है । आत्मा और परमात्मा के साक्षात्कार से पहले हम अपने व्यक्तित्व का साक्षात्कार करें। यह जान लें कि हमारा व्यक्तित्व क्या है ? यह किनकिन तत्त्वों से बना है ? इसका साक्षात्कार होता है कायोत्सर्ग के द्वारा।
पुराने जमाने की बात है ! सम्राट् के मन में स्वर्ग और नरक का साक्षात्कार करने की इच्छा उत्पन्न हुई। उस इच्छा को पूरी करने के लिए वह अनेक स्थानों पर गया। अनेक व्यक्तियों से मिला पर स्वर्ग और नरक का साक्षात्कार कराने वाला कोई नहीं मिला।
एक बार नगर में एक संन्यासी आया। लोगों में चर्चा हुई। उसकी शक्तिसंपन्नता की बात सम्राट तक पहुंची। सम्राट् वहां गया, उसने प्रार्थना की-महाराज ! स्वर्ग और नरक का साक्षात्कार कराएं। संन्यासी बोला---- राजन् साक्षात्कार करके क्या करोगे? अच्छा नहीं है स्वर्ग और नरक का साक्षात्कार करना। भूल जाओ अपनी बात को।' सम्राट ने आग्रह किया । संन्यासी ने कहा-बैठ जाओ यहां । कुछ क्षण तक ध्यान करो ! ध्यान किया। संन्यासी ने तत्काल कहा---'अरे, सम्राट् ! कितना भद्दा है तुम्हारा चेहरा । यदि कोई अंधेरे में देख ले तो भूत समझकर डर जाए । अरे, मुंह पर मक्खियां भनभना रही हैं, लार टपक रही है। तुम सफाई करना भी नहीं जानते । किसने बना दिया तुमको सम्राट् !'
सम्राट ने सुना । वह अवाक् रह गया। मुंह तमतमा उठा । होठ फड़कने लगे । त्यौरियां चढ़ गयीं । आंखों से खून बरसने लगा। इतना गुस्सा उतरा कि वह पागल-सा हो गया। उसने तलवार निकालकर कहा- तुम मुझे क्या नरक दिखाओगे, मैं अभी तुम्हें नरक का मजा चखाता हूं। तुमको विवेक ही नहीं है कि तुम किसके सामने बोल रहे हो ? क्या कह रहे हो?
संन्यासी हंस पड़ा। वह बोला-सम्राट् नरक का साक्षात्कार हुआ या नहीं । सम्राट् ! देखो, जब-जब व्यक्ति आवेश में होता है, भान भूल जाता है, तब-तब वह नरक का साक्षात्कार करता है ।' यह सुनते ही सम्राट् संभला ।
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