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अवचेतन मन से संपर्क
साक्षात्कार होने लग जाता है ।
कुछेक व्यक्ति आत्मा को पाना चाहते हैं पर अनुशासन लाना नहीं चाहते। पर यह संभव नहीं है। अनुशासन के बिना आत्मा का साक्षात्कार नहीं हो सकता।
एक व्यक्ति ने कबीर से पूछा-'क्या आपने आत्मा का साक्षात्कार कर लिया ?'
कबीर ने कहा- हां, कर लिया। क्या आप मुझे भी आत्म-दर्शन करा सकते हैं ? हां, करा सकता हूं। तो कराइए, मैं तैयार हूं।
कबीर ने कहा---'थोड़े ठहरो। अभी विधि बता देता है । वह बैठ गया । कबीर ने अपनी पत्नी को बुलाया । वह आई । कबीर बोला-घी का बर्तन ले आओ । वह घर में गई और घी से भरा बर्तन ले आई। उसने कबीर से पूछा--और क्या आज्ञा है ? कबीर बोला-यह मिट्टी पड़ी है। इसमें घी डालकर इसका 'गारा' बनाओ।' पत्नी ने तत्काल घी का बर्तन मिट्टी में खाली कर डाला। मिट्टी को घी में मिलाया, रौंदा और गारा तैयार हो गया। वह आगंतुक सब देख रहा था । गारा तैयार कर पत्नी ने कबीर से पूछा-अब क्या करूं ? कबीर ने कहा----इस गारे से भींत को लीपो। पत्नी ने वैसे ही किया । कबीर बोला-'अब तुम जा सकती हो।' वह चली गई। कबीर ने उस आगंतुक व्यक्ति से कहा-देखा तुमने ! यह है आत्मा का साक्षात्कार ।
वह बोला---'यह कैसा आत्मा का साक्षात्कार ?'
कबीर ने कहा---'इसी विधि से होगा आत्मा का साक्षात्कार । तुम जाओ, ऐसा करो। हो जाएगा आत्म-साक्षात्कार ।'
उसके मन में उत्साह था। उसने सोचा, बहुत ही सीधा उपाय है आत्म-साक्षात्कार का। थोड़ा घी बरबाद होगा । यदि पांच-दस सेर घी के बदले आत्मा का साक्षात्कार होता है तो यह सौदा महंगा नहीं है।
वह घर पहुंचा । तत्काल उसने पत्नी को बुलाया। वह आई। उसने कहा-'जाओ, शीघ्र घी से भरा बर्तन ले आओ।' पत्नी बोली-क्या कोई रसोई बनानी है ? रसोई तो मैं बना ही रही हूं, फिर तुम घी का क्या करोगे ? उसने कहा--'चिन्ता क्यों करती हो, ले आओ घी का बर्तन । वह गई और घी का डिब्बा ले आई। वह बोला--'जाओ मिट्टी ले आओ।' पत्नी बोली--क्या पागल हो गये हो ? मुझे काम नहीं है क्या ? मिट्टी और घी का क्या करोगे ? बहुत कहने पर पत्नी मिट्टी लाने गई और बड़बड़ाती हुई मिट्टी लेकर आई । पति बोला----इस मिट्टी में घी डालो और गारा बनाओ। यह सुनते ही पत्नी ने कड़क कर कहा-'क्या मदिरा पान कर आए हो?
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