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अवचेतन मन से संपर्क
जून ने यह सन्दुक भेजी है, इसे स्वीकार करें ।' मित्र ने उस सन्दूक को खोलकर देखा तो पता लगा कि वह खाली है । वह भी पहुंचा हुआ साधक था। उसने कहा---'युसूफ ! अभी तुम्हें धर्म की दीक्षा नहीं मिलेगी।' युसूफ ने व्याकुलता से कहा- 'क्यों नहीं मिलेगी? मेरे में धर्म को जानने की प्रबल आकांक्षा है।' साधक मित्र ने कहा-युसूफ ! अभी तुम्हारा आत्म-संयम सधा नहीं है । तुमने सन्दूक खोली । उसमें जो चूहा था, वह भाग गया। जो व्यक्ति एक चूहे की रक्षा नहीं कर पाता, वह आत्मा की रक्षा कैसे कर पाएगा ? अभी तुम्हें धर्म की दीक्षा कैसे मिलेगी ? पहले तुम आत्म-संयम को साधो, फिर धर्म में दीक्षित होना।
युसूफ घर चला गया । आत्म-संयम की साधना की। कई वर्षों तक साधना करता रहा । फिर वह जून सूपी के पास आया और तब गुरु ने उसे धर्म में दीक्षित कर लिया।
जो व्यक्ति अपनी इन्द्रियों, इच्छाओं और आकांक्षाओं पर नियन्त्रण नहीं रख सकता, वह परोक्ष और प्रत्यक्ष की दूरी को कैसे मिटा सकता है ? वह सूक्ष्म भावों का साक्षात्कार कैसे कर सकता है ? बहुत कठिन बात है।
आज सभी लोग मानसिक समस्याओं को मिटाने के लिए बहुत प्रयत्नशील हैं। सब चाहते हैं कि मन की शांति (पीस आफ माइंड) बनी रहे । कोई भी अशान्त रहना नहीं चाहता। वह सीधा समाधान चाहता है। किन्तु यह तब तक संभव नहीं है, जब तक एकाग्रता की शक्ति का विकास नहीं हो जाता, आत्म संयम नहीं सध जाता। क्या मादक द्रव्यों या औषधियों से मानसिक शांति मिल सकती है ? यदि ऐसा संभव होता तो आज विकसित देश पूर्ण मानसिक शांति में होते । उनमें तनाव नहीं होता। वे अरबों-खरबों की गोलियों का निर्माण करते हैं, उनका सेवन करते हैं और पागल भी होते हैं। उनके पास न धन की कमी है, न पदार्थों की कमी है और न वैज्ञानिक अन्वेषणों की कमी है, तो साथ-साथ मानसिक उलझनों की कमी भी नहीं है।
प्रश्न है-क्या आदमी सचमुच उलझनों को मिटाना चाहता है या वह केवल नाटक ही कर रहा है ? मन की अनेक छलनाएं होती हैं । मन आदमी को छल लेता है । प्रत्येक आदमी नाटक करना जानता है क्योंकि उसका मन छलनाओं से भरा पड़ा है।
एक परिवार था । घर के स्वामी का एक मित्र आया। उसकी बहुत आव-भगत की । वह जम गया। महीने बीत गये । वह जाने का नाम ही नहीं ले रहा था। पत्नी ने एक दिन पति से कहा-आपका मित्र तो यहीं टिक गया। जाने की बात ही नहीं कर रहा है। पति बोला-हमें एक नाटक रचना होगा। उससे वह चला जाएगा। एक दिन दोनों ने एक नाटक रचा।
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