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अवचेतन मन से संपर्क
विचित्रताएं हैं। एक अक्षर के आधार पर सारा ग्रन्थ जान लिया जाता है। ग्रन्थ के एक पद के आधार पर पूरे ग्रन्थ का ज्ञान कर लिया जाता है। योगसाधना की एक विशेष उपलब्धि का नाम है 'पदानुसारिणी लब्धि ।' इसका तात्पर्य है-एक पद के आधार पर पूरे ग्रन्थ का ज्ञान कर लेना। 'कोष्ठोपलब्धि' भी योगजन्य उपलब्धि है। इसके द्वारा एक बार जो स्मृत हो गया, वह फिर कभी विस्मृत नहीं हो सकता। जैसे कोठे में धान डाला जाता है और उसे अपनी इच्छानुसार निकाला जाता है, वैसे ही इस उपलब्धि से संपन्न व्यक्ति जब चाहे तब तत्त्व की स्मृति कर सकता है।
___ आदमी में अनन्त क्षमताएं हैं पर वह उनके बारे में अजान है। उसकी सारी क्षमता पुस्तकों । भरी पड़ी है । पास में पुस्तक है तब तक ज्ञान और पुस्तक नहीं है तो ज्ञान भी नहीं है। जो व्यक्ति बाह्य पदार्थ की क्षमता में विश्वास करता है और अपनी क्षमता में विश्वास नहीं करता, वह सफलता का जीवन नहीं जी सकता। उसका दृष्टिकोण कभी विधायक नहीं बन सकता।.....
आइंस्टीन को सापेक्षवाद के सिद्धान्त की जानकारी चिन्तन से नहीं, इंट्यूशन से हुई थी। जितनी भी वैज्ञानिक महान् उपलब्धियां हैं, वे सारी इन्ट्यूशन की अवस्था में मिली हैं । चिन्तन बाह्य होता है, इन्ट्यूशन आंतरिक होता है। सत्य का साक्षात्कार समाधि के क्षणों में होता है, फिर वह सत्य चाहे धर्म का हो, विज्ञान का हो या अन्य किसी क्षेत्र का। एकाग्रता सत्य के साक्षात्कार में सहायक होती है। आदमी मौन बैठा है। वह किसी एक बिन्दु पर एकाग्र होता है तो उसे अनुभव होता है कि ऊपर से कुछ 'अवतरण' हो रहा है। यही अवतारवाद है । भीतर में से जब एक विशिष्ट प्रज्ञा का अवतरण होता है तब व्यक्ति 'अवतार' बन जाता है। यही सत्य की उपलब्धि है, साक्षात्कार है।
हम अपनी क्षमताओं को जानें और उनके प्रति जागरूक बनें। शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थी को पदार्थ की क्षमता का ज्ञान कराया जाता है। यदि इसके साथ ही साथ विद्यार्थी को अपनी स्वयं की क्षमताओं का ज्ञान भी कराया जा सके तो शिक्षा जगत् का महत्त्वपूर्ण अवदान हो सकता है । जीवनविज्ञान की यह नवीन शिक्षा-पद्धति इस दिशा में एक ठोस कदम है । जब व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का ज्ञान होता है तब उसका दृष्टिकोण बदल जाता है, चरित्र और व्यवहार बदल जाता है। सब कुछ बदल जाता है। आज रूपांतरण इसीलिए घटित नहीं हो रहा है कि आदमी को अपनी क्षमताओं का ज्ञान नहीं है। उसे पदार्थ की क्षमताओं का ज्ञान है और इसलिए वह उसी ओर संघर्षरत है, दौड़-धूप कर रहा है । आन्तरिक क्षमताओं के विकास के लिए कोई संघर्ष नहीं है, दौड़-धूप नहीं है । पदार्थ असीम नहीं हैं । वे सीमित हैं । भोक्ता ज्यादा
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