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अवचेतन मन से संपर्क
व्यक्ति की अभिव्यक्ति होती है । क्या समस्या के समाधान में यह बहुत बड़ी बाधा नहीं है ? यह दोहरा व्यक्तित्व विभाजित व्यक्तित्व बहुत बड़ी बाधा है । हम दो व्यक्तित्वों में जीते हैं --- एक है बाहरी व्यक्तित्व और दूसरा है भीतरी व्यक्तित्व, आन्तरिक व्यक्तित्व । बाहरी व्यक्तित्व का एक रूप है और आंतरिक व्यक्तित्व का दूसरा रूप है। यही सबसे बड़ी समस्या है। जब तक इस समस्या का समाधान नहीं हो जाता, तब तक कैसे संभव है कि मानसिक समस्या का समाधान हो जाए ? कैसे संभव है कि मानसिक शांति प्राप्त हो और अशांति का चक्र समाप्त हो ? सबसे पहले हमें अपने व्यक्तित्व को एकत्व या अद्वैत में बदलना होगा । व्यक्तित्व अखंड और एक बन जाए, सारे खंड समाप्त हो जाएं, सारे आवरण मिट जाएं । महिलाएं ही आवरण या पर्दे में नहीं होती । कौन ऐसा पुरुष है जिसके पर्दा नहीं है ? सब पर्यों के पीछे बैठे हैं । ये सारे पर्दे समाप्त हो जाएं और आर-पार प्रत्यक्ष हो जाएं । यही अखंड व्यक्तित्व है। आर-पार शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण शब्द है । आर नदी का एक तट है और पार नदी का दूसरा तट है । पुलों का निर्माण इसीलिए हुआ कि व्यक्ति आर-पार जा सके । जब केवल आर का दर्शन होता है और पार का दर्शन नहीं होता है तो बात अधूरी रह जाती है ।
हमारा व्यक्तित्व आर-पारदर्शी बन जाए तब वह अखंड व्यक्तित्व माना जाता है। वह इधर को भी देख सके और उधर को भी देख सके । वह विचार आचार और व्यवहार----इन तीन स्थूल तत्त्वों को भी देखे, कर्म, भाव और रसायन---इन तीन सूक्ष्म तत्त्वों को भी देखे । स्थूल 'आर' है और सूक्ष्म 'पार' है । जो आरपारदर्शी होगा वह स्थूल को भी देखेगा और सूक्ष्म को भी देखेगा । इन दोनों-स्थूल और सूक्ष्म अर्थात् छहों तत्त्वों के बीच कोई आवरण न हो। इस स्थिति में मानसिक समस्या समाहित हो सकती है।
प्रश्न होता है, क्या ऐसा होना संभव है ? क्या यह शक्य अनुष्ठान है ? असंभव जैसा कुछ है ही नहीं। यदि सम्यक उपादान, सम्यक् निमित्त और सम्यक सामग्री उपलब्ध हो जाए तो असंभव कुछ नहीं होता और यदि इन तीनों का योग नहीं मिलता है तो छोटे से छोटा कार्य भी असंभव बन जाता है । जिस व्यक्ति की अन्तर्दृष्टि जाग जाती है, उसके लिए सब संभव है और जिसकी यह दृष्टि नहीं जागती, उसके लिए सब असम्भव है।
___ एक घटना है। आचार्य भिक्षु के दो शिष्य पानी की भिक्षा लाने के लिए गए। सारे गांव में घूमे, पर कहीं प्रासुक पानी नहीं मिला । घूमते-घूमते वे एक किसान के घर में गए। उसके वहां प्रासुक पानी था। मुनि ने पानी की याचना की। बहिन बोली-महाराज ! पानी तो शुद्ध है, प्रासुक है, पर मैं इसे नहीं दूंगी। मुनि ने कहा-बहिन ! क्यों ? उसने कहा-महाराज !
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