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मनोभाव कैसे जानें ?
मानसिक समस्याएं अनेक हैं । अनेक प्रयत्नों के उपरान्त भी उनका समाधान नहीं हो रहा है । कारण की मीमांसा करने पर ज्ञात होता है कि समस्या का होना प्रकृति या नियति को मान्य है और इसीलिए मान्य है कि हम दो प्रकार के जगत् में जी रहे हैं । एक है स्पष्टता का जगत् और दूसरा है अस्पष्टता का जगत् । प्रत्यक्ष जगत् और परोक्ष जगत् ।
पर सब कुछ स्पष्ट
सब कुछ साक्षात्
परोक्ष जगत् समस्याओं का उद्भावक है क्योंकि उस पर अनेक आवरण हैं । कोई भी तथ्य इतना स्पष्ट नहीं है कि प्रत्येक आदमी उसको समझ ले । समस्या का सबसे बड़ा समाधान है - प्रत्यक्ष । इसीलिए अध्यात्म के अचार्यों ने साक्षात्कार को सर्वोपरि महत्त्व दिया । उन्होंने केवल ज्ञान को प्रत्यक्ष का चरम बिन्दु माना । केवलज्ञान होने हो जाता है । उसमें कोई व्यवधान या तिरोधान नहीं होता, हो जाता है । समस्या के समाधान का सबसे बड़ा सूत्र है- स्पष्टता, प्रत्यक्ष, साक्षात्कार | किन्तु हम जिस जीवन को जी रहे हैं, वह अस्पष्टताओं का जीवन है, परोक्ष का जीवन है । हमारे कर्म, भाव और भाव से उत्पन्न होने वाले रसायन - तीनों हमारे लिए अस्पष्ट हैं । हम कर्मों को नहीं जानते, क्योंकि वे भी बहुत सूक्ष्म हैं । हम भाव के द्वारा इस स्थूल शरीर में उत्पन्न होने वाले रसायनों को भी नहीं जानते । कर्म, भाव और रसायन - तीनों परोक्ष हैं । हमारे प्रत्यक्ष केवल एक विचार है और उससे उत्पन्न होने वाली प्रवृत्ति है ।
विचार और आचरण या व्यवहार- ये दो स्पष्ट हैं, प्रत्यक्ष हैं । किन्तु विचार, आचार और व्यवहार के पीछे काम करने वाले तीन तत्व - रसायन, भाव, और कर्म --- ये बिलकुल अस्पष्ट हैं, परोक्ष हैं, पर्दे के पीछे हैं । इस स्थिति में समस्या का समाधान कैसे हो ? आधी स्पष्टता है और आधी अस्पष्टता है । पचास-पचास प्रतिशत है । यही उलझन का आदि बिन्दु है । जब तक पूरी स्पष्टता नहीं होती तब तक उलझन मिटती नहीं । कल्पना चलती है, सन्देह उभरते हैं और उलझन अधिक गहरी हो जाती है । उलझन का अन्त आता है स्पष्टता में ।
हमारी सबसे बड़ी समस्या है— अस्पष्टता । हम स्वयं अपने आप में भी स्पष्ट नहीं हैं और इसीलिए नहीं हैं कि हमारे सामने जगत् का पूरा चित्र नहीं है
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