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अवचेतन मन से संपर्क
बोझा न ढोना पड़े। बेचारे भविष्य को, जो वर्तमान होता है, अतीत का कितना बोझा ढोना पड़ता है ?
बादशाह अकबर, बीरबल और शाहजादा—तीनों जंगल में घूमने निकले । गांव के बाहर जाकर बादशाह ने अपने सारे कपड़े उतार कर बीरवल को दे दिये । शाहजादे ने देखा, उसने भी अपने कपड़े उतार कर बीरबल को दे दिये । बीरबल के कपड़ों का भारी बोझा हो गया। बादशाह ने बीरबल की हालत देखकर व्यंग कसते हुए कहा-बीरबल ! आज तो गधे का-सा भार ढो रहे हो ? बीरबल बोला-जहांपनाह ! एक गधे का नहीं, दो गधों का भार ढो रहा हूं।'
बीरबल को दो गधों का भार ढोना पड़ा होगा, पर आज मनुष्य न जाने कितने गधों का भार ढो रहा है ? व्यक्ति अतीत का परिष्कार नहीं करता तो उसे इतने गधों का भार ढोना पड़ता है कि बेचारा वर्तमान उस भार के नीचे दब कर टूट जाता है।
मन क्यों टूटता है ? मन में बेचनी क्यों होती है ? मन में डिप्रेसन क्यों होता है ? मन क्यों सताता है ? उस में कमजोरियां क्यों आती हैं ? उसमें भय क्यों उत्पन्न होता है ? अकारण ही भय क्यों सताता है ? ये प्रश्न
इन सब समस्याओं से मुक्त होने के लिए हम वर्तमान को समझें, वर्तमान में जीएं। पर अतीत से कट होकर नहीं । अतीत का भी पूरा मूल्यांकन करते रहें, क्योंकि हम अतीत से बहुत प्रभावित होते हैं । अतीत का परिष्कार करते चलें, पर वर्तमान पर इतना बोझ न लादें कि वह टूट जाए।
भाव मन और प्रभाव.--यह त्रिकोण है । एक कोण पर है भाव, तीसरे कोण पर है प्रभाव और दूसरे कोण पर है मन । भाव मन पर बोझ लाद रहा है तो प्रभाव भी मन पर बोझ लाद रहा है । मन दोनों ओर से भारी हो रहा है । दोनों पाटों के बीच में वह पिसता जा रहा है । कबीर ने ठीक ही कहा था-'दो पाटन के बीच में साबत बचा न कोय ।' प्रभाव अनेक प्रकार से होता है।
भगवान महावीर ने कहा- प्रत्येक वस्तु को समझने के लिए, सचाई को समझने के लिए चार दृष्टियों का उपयोग करना होगा । वे चार दृष्टियां हैं-द्रव्य की दृष्टि, क्षेत्र की दृष्टि, काल की दृष्टि और भाव की दृष्टि । द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के आधार पर ही वस्तु-सत्य तक पहुंचा जा सकता है, अन्यथा नहीं।'
यदि कोई आइन्स्टीन को समझना चाहे, सापेक्षवाद को समझना चाहे
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