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अवचेतन मन से संपर्क
या कठिनाई से बदली जा सकती है। जब तक आदत नहीं बदलती, स्वभाव नहीं बदलता, स्थानान्तरण हो सकता है, रूपान्तरण नहीं हो सकता । आदमी अनेक स्थान बदल लेता है, पर आदत बदलने में वह सक्षम नहीं होता । आदतें, संस्कार चेतना के किसी कोने में जमे हुए होते हैं । जब ध्यान की ऊर्जा प्रबल होती है, तब उसके द्वारा चेतना का शोधन होता है और तब आदतें छूट जाती हैं । उन्हें छोड़ा नहीं जाता, वे स्वयं छूट जाती हैं ।
एक भाई ने पूछा, पातंजल योग में अष्टांग योग की एक पूरी पद्धति है । क्या प्रेक्षा ध्यान में ऐसी क्रमिक पद्धति नहीं है ?
मैंने कहा -वैसी क्रमिक पद्धति की बहुत आवश्यकता नहीं है । आज चितन बहुत आगे बढ़ गया है । दो विकल्प सामने हैं। एक हैं यम-नियम के क्रम से चलें और दूसरा है सीधे ध्यान से चलें। ध्यान की परिपक्वता में यमनियम स्वयं सध जाते हैं, पर यम-नियम की साधना से ध्यान नहीं आता । यदि हम पहले यम-नियम को साधने में लगे रहें तो फिर ध्यान की प्रक्रिया तक पहुंचने में बहुत दीर्घ समय लग जाएगा । आज का आदमी उतना धैर्य नहीं रख सकता । आज वह अत्यन्त अधीर है। एक क्षेत्र में नहीं, सभी क्षेत्रों में उसकी अधीरता प्रत्यक्ष हो रही है । पति जीवन में दस पत्नियां बदल देता है और पत्नी दस पति बदल देती है । दिन में चार डॉक्टर बदल दिए जाते हैं । आज अधैर्य सीमा को लांघ चुका है । पहले यम को साधो, फिर नियम को साधो और चलते-चलते अन्त में समाधि तक पहुंचो । कितना दीर्घ समय ! कितनी लम्बी साधना ! आज का आदमी अभी, इसी क्षण फल चाहता है । यदि कोई लम्बी प्रक्रिया बता दी जाए तो पहले सोपान पर ही आदमी लड़खड़ा जाएगा। कहां चढ़ पाएगा आठ-दस सोपान ? आवश्यकता यह है कि साधक को 'कुछ लाभ है' की अनुभूति प्रथम सोपान पर ही करा देनी चाहिए । यदि ऐसा होता है तो उसका उत्साह बना रहता है और वह आगे बढ़ने के लिये उत्सुक हो सकता है । ध्यान ही एक ऐसी प्रक्रिया है जो तत्काल लाभ की अनुभूति कराती है । आज के देश-काल को देखते हुए यही मार्ग सरल और संगत लगता है । ध्यान करते-करते आदतें बदल जाती हैं । आदतें बदलने के पश्चात् आदमी ध्यान में लगे, यदि ऐसा हो तो आदमी कभी ध्यान में नहीं लग पाएगा । न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी । यदि हम यह प्रतिबंध लगा दें कि शिविर में वे ही व्यक्ति भाग लें या ध्यान में वे ही व्यक्ति आएं, जिनकी आदतें बदल चुकी हैं, तो मैं अकेला ही होता इस हॉल में, कोई नहीं आता । कैसी भी आदतें लेकर आए आदमी, ध्यान करते-करते उसमें रूपान्तरण अवश्य होगा और एक दिन वह अनुभव करेगा कि वह अनेक आदतों से मुक्त हो गया
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