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मस्तिष्क के नियंत्रण का विकास
धर्म दर्शन दमन की प्रक्रिया सिखाते हैं । यह भ्रांति है । धर्म-दर्शन में कहीं भी दमन की बात नहीं है। फिर चाहे वह सेक्स का प्रश्न हो, क्रोध या आवेग का प्रश्न हो, वहां दमन मान्य नहीं है । जो धर्म दमन की प्रक्रिया का संवाहक है, वह धर्म नहीं हो सकता, और कुछ हो सकता है । धर्म की पूरी प्रक्रिया शोधन और रेचन की प्रक्रिया है । उसका उद्देश्य है वृत्ति का शोधन या रेचन । मानसिक वृत्तियों के निराकरण की जो मनोवैज्ञानिक विधियां हैं, पद्धतियां हैं, उनमें एक विधि दमन की भी है और एक विधि सब्लीमेशन - उदात्तीकरण की भी है । उसमें एक स्वेच्छिक निर्णय की विधि है और एक विवेकपूर्ण निर्णय की विधि है । ये चार विधियां प्रचलित हैं । धर्म की चार पद्धतियां हैंस्वाध्याय, ध्यान, भाव-विशुद्धि और तपस्या । इनसे वृत्तियों का शोधन होता है, रेचन होता है ।
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स्वाध्याय लाभप्रद नहीं
।
इसीलिए वांछित फल
पर बदलता नहीं । धर्म
का ज्वलंत प्रश्न हैं । आधी बात को स्वीकार किया
स्वाध्याय एक पद्धति है, जिससे भाव को बदला जा सकता है । अच्छा विचार और अच्छा चिन्तन करने से अच्छे साहित्य का अध्ययन-मनन करने से भाव बदल जाता है, वृत्ति बदल जाती है । यह एक उपाय है शोधन करने ET | यह कहना कठिन है कि यह कितना प्रभावी होता है । यह प्रभाव डालता है यदि विधि के अनुसार स्वाध्याय किया जाए । आदमी स्वाध्याय करना नहीं जानता । पढ़ना मात्र स्वाध्याय नहीं है । उसके साथ चिंतन-मनन जुड़ना चाहिए | जब तक चिंतन-मनन नहीं जुड़ता तब तक होता । हमने आधी बात पकड़ी है, आधी छोड़ दी है नहीं मिल रहा है | आज का आदमी पढ़ता बहुत है, की बात सुनता बहुत है पर बदलता नहीं । यह आज यह प्रश्न इसलिए उभर रहा है कि आदमी ने है और आधी को छोड़ दिया है। तीन तथ्य मनन और निदिध्यासन । तीनों जुड़े हुए हैं सकता । हमने एक पैर तोड़ डाला और अपेक्षा करते हैं कि आदमी लंगड़ा न चले । यह कैसे संभव होगा ? ठीक चलने के लिए दोनों पैर चाहिए । लंगड़ा आदमी लड़खड़ाता ही चलेगा। सुना या पढ़ा, इतना ही पर्याप्त नहीं है । उसके बाद मनन और निदिध्यासन भी अपेक्षित होता है । मनन की अवधि लम्बी होनी चाहिए। भोजन करने में दस-बीस मिनट लगते हैं, पर उसे पचाने का काल लम्बा होता है । भोजन को पचाने के लिए तीन-साढ़े तीन घण्टा चाहिए । खाने की अवधि अल्प और पचाने की अवधि ज्यादा | इसी प्रकार पढ़ने का समय थोड़ा और उसे पचाने का समय अधिक चाहिए । यदि दिन में एक पृष्ठ पढ़ा जाए तो उसे पचाने के लिए पचास पृष्ठ पढ़ने जितना समय चाहिए। मनन के लिए लम्बा समय चाहिए । मनन के द्वारा
साथ-साथ चलते हैं-श्रवण,
।
इनको अलग नहीं किया जा
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