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अवचेतन मन से संपर्क
अंकन प्रगट होता है तब व्यक्तित्व की नई-नई चेतनाएं उद्भूत होती हैं। उस सूक्ष्म शरीर में केवल दमित वासनाएं ही नहीं हैं, अच्छे संस्कार भी हैं। यदि केवल इच्छाएं और वासनाएं ही होती तो व्यक्तित्व का रूप अत्यन्त भद्दा हो जाता । उसमें कभी सौन्दर्य नहीं आ पाता। व्यक्ति के जीवन में सौन्दर्य के लिए भी बहुत बड़ा अवकाश है। उसमें अच्छा आचरण भी है, अच्छा व्यवहार भी है। हमारे व्यक्तित्व में जितनी अच्छाइयां हैं, जितना सौन्दर्य है, वह दमित वासनाओं का परिणाम नहीं है । सूक्ष्म शरीर की व्याख्या में ये दोनों तथ्य बहुत स्पष्ट हो जाते हैं कि उसमें हमारा अच्छा और बुरा आचरण, अच्छा और बुरा चिन्तन-दोनों अंकित होते हैं, संचित होते हैं । जब ये संचित संस्कार प्रगट होते हैं तब अच्छाई भी प्रगट होती है और बुराई भी प्रगट होती है। दोनों की अपनी सीमाएं हैं, रेखाएं हैं।
इस अज्ञात और सूक्ष्म व्यक्तित्व के साथ हमारा संपर्क स्थापित हो, जीवन की सफलता के लिए यह अत्यन्त अपेक्षित है । वह व्यक्ति सफलता का जीवन नहीं जी सकता जो केबल स्थूल शरीर के आधार पर सारे निर्णय लेता है। हमारे सामने परिस्थितियां हैं, आनुवंशिकता का प्रश्न है और वैयक्तिक प्रेरणाएं भी हैं । मनोवैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति के तीन आयाम हैं-आनुवंशिकता, पर्यावरण और व्यक्तिगत संस्कार । इसके साथ चौथा आयाम(डाइमेन्शन) और जोड़ देना चाहिए। वह है कर्म । केवल इन तीनों से व्यक्तित्व की समग्र व्याख्या नहीं हो सकती । कर्म को जोड़ने पर ही समग्र व्याख्या की जा सकती है । आनुवंशिकता (हेरेडिटी) हमारे आचरण और व्यवहार को प्रभावित करती है पर सारी बातें उसकी परिधि में नहीं आतीं। प्राणी के अपने जीन्स हैं। उनमें जो निर्देश लिखित हैं, वे केवल आनुवंशिकता के आधार पर ही नहीं होते । उससे भी बड़ी बात एक और है। वह है कर्म । आज के जीन सिद्धान्त की तुलना यदि कर्म सिद्धान्त से की जाए तो अनेक समस्याओं का समाधान प्राप्त होता है। कर्म के सिद्धान्त को चौथा आयाम या पहला आयाम माना जा सकता है । कर्म है तो आनुवंशिकता है, फिर पर्यावरण और फिर वैयक्तिक प्रेरणाएं । इन चारों के आधार पर यदि जीवन को समझने का प्रयास किया जाए तो आदमी सफल हो सकता है और अनेक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत कर सकता है।
कुछ वर्ष पूर्व हम उदयपुर में थे। एक भाई ने कहा-मैं इतना इलाज करा चुका हूं कि चिकित्सा से तंग आ गया हूं। मेडिकल सांइस कहती है कि इस व्याधि का इलाज अभी तक खोजा ही नहीं गया। उसके कथन से एक बात बहुत स्पष्ट रूप से उभर कर आती है कि कोई भी समाधान किसी एक विद्या के पास नहीं है । उसके लिए और अनेक विधाएं हैं। उनका अनुगमन करने से समाधान मिल जाता है। इसी प्रकार जीवन की समग्रता को किसी एक
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