________________
२८
अवचेतन मन से संपर्क
दृष्टिकोण से नहीं समझा जा सकता । समग्रता को समग्रता के दृष्टिकोण से ही समझा जा सकता है।
__ कुछेक लोग परिस्थिति को ही सब कुछ मानकर वहीं रुक जाते हैं, निराश हो जाते हैं। यह सच है कि जितने भी निषेधात्मक भाव हैं, नेगेटिव एटिट्यूड हैं, उनके उद्दीपन में परिस्थिति का बहुत बड़ा हाथ रहता है। प्रत्येक व्यक्ति कह देता है, मैं क्या करूं, परिस्थिति ही ऐसी थी। नेगेटिव दृष्टिकोण निराशा का बहुत बड़ा आधार है । परिस्थिति का भी अपना मूल्य है, अपना स्थान है, किन्तु सब कुछ परिस्थिति ही नहीं है। एक समान परिस्थिति में पांच व्यक्ति जीते हैं। पांचों की अनुभूति में अन्तर होता है।
एक दम्पति मेरे पास आया। पति बोला, मैं बहत दुःखी हूं। मेरे जीवन के क्या ग्रह हैं कि एक के बाद दूसरी समस्या आती रहती है । मैं जीवन से निराश हो गया हूं। मैंने कहा-निराशा की बात ही क्या है ? समस्याएं प्रत्येक के जीवन में होती हैं। इस दुनिया में जो जन्मा है, उसे दुःख दर्द का सामना करना ही होगा। क्या राम और कृष्ण को कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ा ? क्या महावीर और बुद्ध के जीवन में समस्याएं नहीं आई ? कोई भी महापुरुष ऐसा नहीं हुआ, जिसने समस्याओं, कठिनाइयों और दुःखों का सामना न किया हो । अन्तर इतना ही आता है कि महान व्यक्ति वह होता है जिसका दृष्टिकोण विधायक होता है, जो समस्या में से समाधान निकाल लेता है, दुःख में सुख निकाल लेता है । जिसका दृष्टिकोण निषेधात्मक होता है, वह सुख में से भी दुःख निकाल लेता है। ऐसी घटनाएं आए दिन घटती रहती हैं। ऐसे व्यक्ति के लिए राई जितनी समस्या भी पहाड़ बन जाती है। उसका मनोबल कमजोर होता है । वह कुछ भी सह नहीं पाता। जिसका दृष्टिकोण सम्यक् होता है, जिसका मनोबल विकसित होता है उसके लिए पहाड़ जैसी समस्या भी राई जितनी छोटी बन जाती है। जब तक हम अपनी अन्तर की शक्ति को विकसित नहीं करेंगे तब तक हमारे लिए कहीं भी सुख नहीं है । क्या हम कल्पना करते हैं कि परिस्थिति बदल जाने पर, वातावरण बदल जाने पर, प्रतिकूलताएं समाप्त हो जाने पर, अनुकूलताएं आ जाएंगी। न भूतं, न भविष्यति-ऐसा न हुआ है और न होगा, क्योंकि इस जगत् की प्रकृति ही कुछ ऐसी है । एक समस्या समाहित होती है और दूसरी खड़ी हो जाती है। _ मनुष्य ने अपनी सुख-सुविधा के लिए अनेक उद्योग धन्धे प्रारम्भ किये। उनसे प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक वस्तु सुलभ हो गई है । पुराने जमाने में जो वस्तुएं बड़े लोगों को ही सुलभ हो पाती थी, वे सब वस्तुएं आज सर्व-साधारण व्यक्ति को सुलभ हैं। यह समस्या का समाधान हुआ पर इससे प्रदूषण की समस्या खड़ी हो गई। उद्योग बढ़ेगा तो प्रदूषण भी बढ़ेगा। एक समस्या के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org