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अवचेतन मन से सम्पर्क
चाहिए, एक ही बात हमारे समक्ष दो रूपों में प्रगट होती है । यह द्वैत व्यक्तित्व है, दोहरा व्यक्तित्व है। व्यक्तित्व का एक रूप है काम और दूसरा रूप है परिग्रह । जब काम का अस्तित्व रहता है तब अर्थ भी परिग्रह बन जाता
एक त्यागी मुनि कपड़े पहनता है, रोटी खाता है, मकान में रहता है । वह परिग्रह नहीं है । न कपड़ा परिग्रह है, न रोटी परिग्रह है और न मकान परिग्रह है । मुनि कभी-कभी राज-प्रसादों में रहते हैं । बड़े-बड़े धनवानों के विशाल मकानों में आवास करते हैं । यदि मकान परिग्रह बनता तो मुनि सबसे बड़े परिग्रही होते । उनके जितना बड़ा परिग्रही कोई नहीं होता, क्योंकि प्रतिदिन नए-नए मकानों में रहते हैं । वर्ष भर में कितने मकानों में रह जाते हैं ! पर कहीं कोई परिग्रह नहीं छू पाता।
पूछा गया--साधक खाता है, पीता है और भी अनेक वस्तुएं रखता है, उनका उपभोग करता है, फिर भी परिग्रह नहीं, क्यों ? आचार्य ने कहाममत्व या मूर्छा के जुड़े बिना पदार्थ परिग्रह नहीं बनता। ममत्व परिग्रह है, केवल पदार्थ परिग्रह नहीं है।
यह एक महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक सचाई है-वस्तु परिग्रह नहीं है, परिग्रह है हमारे भीतर रहा हुआ काम । जब काम का परिकार हो जाता है, काम-शुद्धि हो जाती है तब वस्तु अपरिग्रह बन जाती है । जब तक काम अपरिष्कृत रहता है, तब तक वस्तु परिग्रह बनी रहती है। इसीलिए आचार्यों ने परिग्रह को दो भागों में बांटा-एक है भीतर का परिग्रह और दूसरा है बाहर का परिग्रह । सारी मानसिक ग्रन्थियां भीतर के परिग्रह हैं । सोना, चांदी, लोहा, धन-धान्य आदि बाहर का परिग्रह है । बाहर का परिग्रह हमें नहीं बांधता । बांधता है भीतर का परिग्रह । काम भीतर का परिग्रह है। वह बांधता है।
काम और अर्थ जीवन यात्रा को चलाने के लिए हैं। काम के बिना जीवन की यात्रा नहीं चलती। जीवन की यात्रा तब तक चलती है, जब तक काम है। कामना तब तक पूरी नहीं होती जब तक अर्थ नहीं होता । कामना की पूर्ति का एकमात्र साधन है अर्थ । जो आदमी केवल इन दो आयतनों में ही जीना चाहता है, वह आदमी शांति का जीवन नहीं जी सकता । वह व्यक्ति संतोष, स्थिरता और प्रसन्नता का जीवन नहीं जी सकता।
आज के लोग दो खेमों में बटे हुए हैं । कुछ लोग केवल दो आयतनोंकाम और अर्थ--में जीना चाहते हैं। वे धर्म को भी नकारते हैं और मुक्ति को भी नकारते हैं। कुछ लोग चार आयतनों में जीना चाहते हैं । जो केवल दो आयतनों में जीना चाहते हैं, वे मानवीय चेतना के साथ खिलवाड़ करते हैं । वे मनुष्य को केवल रोटी के आधार पर जिलाना चाहते हैं। क्या रोटी
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