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सम्पादकीय
( (कन्दकन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर) ( अहेत् वचन ।
गुणात्मकता - आज की आवश्यकता
अर्हत वचन वर्ष-14, अंक-4 प्रस्तुत करते हुए हम हर्षित हैं। यह हमारे माननीय लेखकों एवं पाठको के अनवरत सहयोग का प्रतिफल है। वर्ष-14 का यह अंतिम अंक अहिंसा, शाकाहार एवं पर्यावरण संरक्षण को अपना जीवन समर्पित करने वाले हिन्दी साहित्य एवं जैन दर्शन के उद्भट विद्वान स्व. डॉ. नेमीचन्द जैन को समर्पित है। डॉ. नेमीचन्द ने अहिंसा एवं शाकाहार के प्रचार को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया फलत: हम उनके मिशन के अनुरूप प्रस्तुत अंक में अहिंसा एवं शाकाहार पर विशेष सामग्री प्रकाशित कर रहे है। हमारा विश्वास है कि स्व. डॉ. नेमीचन्दजी के प्रति यही सच्ची श्रद्धांजलि है।।
18 अक्टूबर 1987 को स्थापित कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ ने अपनी स्थापना के 15 वर्ष पूर्ण कर लिये हैं। 1987 से 1995 तक प्रथम चरण में हमने आधारभूत सविधाओं के विकास एवं प्राथमिक तैयारियों पर जोर दिया, फलत: 1995 में हमें देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इन्दौर से कला एवं विज्ञान संकाय में शोध केन्द्र की मान्यता प्राप्त हुई। 1995 से 2002 के द्वितीय चरण में हमने अपनी गतिविधियों को विस्तार एवं उन्हें बहुआयामी बनाने पर जोर दिया। अनेक योजनाएँ एवं कार्यक्रम प्रारम्भ किये। अनेक सफल एवं कुछ असफल रहे। कुछ परियोजनाएँ पूर्ण तथा कुछ अपूर्ण रहीं। किन्तु प्रत्येक परियोजना से हमें नवीन जानकारियाँ, अनुभव एवं नया सीखने का अवसर प्राप्त हुआ। इन सबसे हमारी राष्ट्रीय पहचान बनी।
वर्ष 2003 से हम तृतीय चरण प्रारम्भ करने जा रहे हैं। इस चरण में गत अनुभवों का लाभ लेकर हम अपने कार्यक्रमों एवं योजनाओं की गुणात्मकता पर विशेष जोर देंगे। इसकी शुरुआत हम अर्हत वचन से कर रहे हैं।अर्हत् वचन के विशेषांक के प्रकाशन के समय (सितम्बर -88) से अब परिदृश्य बदल चुका है। जहाँ शोध पत्रिकाओं की संख्या बढ़ी है, वही उनके रंग - रूप, साज-सज्जा एवं विषयवस्तु में भी व्यापक परिवर्तन आया है। परिवर्तन की इस प्रक्रिया में अर्हत वचन के योगदान का मूल्यांकन हमारे सुधी पाठकों को ही करना है।
वर्ष 2003 अर्थात् अहंत वचन वर्ष-15 का प्रथम अंक जनवरी 2003 में प्रकाश्य है। इस अंक में हम गत 14 वर्षों में प्रकाशित लेखों की सूची एवं कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ की गत 15 वर्षों की गतिविधियों का लेखा - जोखा प्रस्तुत करेंगे। हम इस अंक में अर्हत् वचन में अद्यतन प्रकाशित सामग्री की विभिन्न रीतियों से वर्गीकृत अधिकाधिक जानकारी प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे है। अर्हत् वचन के गत 14 वर्षों के विभिन्न विषयों के निष्णात लेखकों के पते भी उपलब्धतानुसार प्रकाशित किये जा रहे हैं। फलत: यह अंक शोधार्थियों के लिये एक बहमूल्य दस्तावेज बन सकेगा, ऐसा हमें विश्वास है।
अर्हत वचन के आगामी अंकों में प्रकाश्य सामग्री की गुणात्मकता में वृद्धि हेतु हम पूर्व घोषित कतिपय प्रावधानों पर एक बार पुन: माननीय लेखकों का ध्यान आकृष्ट कर रहे हैं। प्रस्तुत अंक के पृ 115 एवं 116 पर हम हिन्दी एवं अंग्रेजी में लेखकों के लिये अनुदेश पुन: प्रकाशित कर रहे हैं। भविष्य में अर्हत् वचन में आलेखों का प्रकाशन इन अनुदेशों का पालन करने पर ही संभव होगा। इससे मानकीकरण करने एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अर्हत वचन में प्रकाशित सामग्री की समीक्षा (Reviewi संभव होगी। हमारा प्रयास इस पत्रिका को अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप ले जाना है। हमें आशा ही नहीं अपितु
अर्हत् वचन, 14 (4), 2002
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