Book Title: Arhat Vachan 2002 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 10
________________ जीने का हक सब को है, पर आज मनुष्य ने विश्व जिजीविषा को चुनौती दी है। शरीर पोषण के नाम पर, रसना की लोलुपता मांसाहार को बढ़ावा मिल रहा है। सरकार भी मीडिया के माध्यम से उसका खुल कर प्रचार कर रही है, डालर की भूख ने उसे अंधा बना दिया है। विदेशों को बढ़ते मांस के निर्यात से होने वाली हानि से हमारी सरकार बेखबर है। वह कृषि एवं कत्लखाने में कोई अन्तर ही नहीं कर रही है, धड़ाधड़ कत्लखाने खुल रहे हैं। डॉ. साहब ने हमारी आँखें खोलने के लिये 'मांस निर्यात 100 सत्य', 'कत्लखाने 100 तथ्य', 'अण्डा - जहर ही जहर', अण्डा - 100 तथ्य', 'कत्लखानों का नर्क', 'हिंसा कत्ल क्रूरता' आदि कई पुस्तकें अत्यन्त सरल और सरस भाषा में लिखी हैं। यही नहीं उन्होंने कत्लखानों को भूकम्प का कारण निरूपित करने वाली वैज्ञानिक पुस्तक भी लिखी है। पश्चिमी संस्कृति की नकल से बढ़ रही फैशन की दीवानगी के लिये भी 'बेकसूर प्राणियों के खून में सने हमारे बर्बर शौक' जैसी कितनी ही मन को हिलाने वाली पुस्तकें लिखी हैं। - उनका मानना है कि यह हमारी संस्कृति पर क्रूर, बर्बर, निर्मम, बदहवास हमला है। हमें अहिंसा, करूणा और सह अस्तित्व की पुन: प्रतिष्ठा करनी पड़ेगी। उन्होंने शाकाहार को अहिंसक जीवन शैली निरूपित करते हुए शाकाहार की गुणवत्ता, शाकाहार ब्लू प्रिन्ट, शाकाहार ही क्यों ?, आदि पुस्तकों में वैज्ञानिक महत्वपूर्ण आधारों पर शाकाहार की वकालत की है। इन छोटी-छोटी पुस्तकों, रोमांचक दास्तानों के माध्यम से हमें पशु-पक्षियों, कीट-पतंगों तथा अन्य सभी प्राणियों के प्रति करुणा और सद्व्यवहार की अच्छी शिक्षा दी है। यही नहीं, 'शाकाहार क्रांति' और 'तीर्थंकर' मासिक पत्रों की सम्पादकीय के माध्यम से आपने विगत 15 वर्षों में शाकाहार की दिशा में प्रगति के साथ साथ इस अभियान में आये उतार चढ़ाव, चुनौतियों आदि का विशद विवेचन किया है। शाकाहार के इतिहास में ये दस्तावेजी पृष्ठ हमें दिशा दर्शन तो देंगे ही, साथ ही शाकाहार विषयक साहित्य की आधारभूत सामग्री भी प्रमाणित होगी। 'शाकाहार मानव सभ्यता की सुबह' शीर्षक उनकी कृति तो इस विषय की प्रतिनिधि पुस्तक है। अपनी कृतियों तथा सम्पादकीय में डाक्टर साहब ने देश- विदेश की पत्र-पत्रिकाओं के हवाले से चूहों के व्यंजनों की लोकप्रियता, नर शिशुओं का गोश्त परोसने आदि कई चौंकाने वाले तथ्य प्रस्तुत किये है। हमें डॉ. सा. की कुछ सीखों की ओर ध्यान देना होगा - ( 1 ) विज्ञान के ईमानदार लोकप्रियकरण की गति तेज करें, (2) धर्म को उखड़ने न दें, (3) अंधविश्वासों, हिंसा, क्रूरता पर बंदिश लगायें, (4) मांसाहार के लिये होने वाली बर्बरताओं और क्रूरताओं को अविलम्ब रोकें, (5) झूठे विज्ञापनों की अनुमति न दें, (6) अहिंसा को सार्वजनिक जीवन के अन्तिम तल तक पहुँचायें, (7) उन व्यक्तियों को, उद्योगों, व्यवसायों, फर्मों, अभिकरणों आदि को दण्डित करें जो सार्वजनिक जीवन में हिंसा और क्रूरता, कत्ल और रक्तपात को जबरन थोप रहे हैं। यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 6 Jain Education International ■ डॉ. प्रकाशचन्द जैन सदस्य - निदेशक मंडल, कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर For Private & Personal Use Only अर्हत् वचन, 14 (4), 2002 www.jainelibrary.org

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