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आप्तपरीक्षा - स्वोपज्ञटीका
पहला संस्करण बहुत पहलेसे अप्राप्य हो गया था और दूसरे संस्करणकी आवश्यकता पाठक अनुभव कर रहे थे । यह सुयोगकी बात है कि आचार्य विमलसागरजी महाराजकी ७५वीं जन्म जयन्तीके अवसरपर जिन ७५ ग्रन्थों का प्रकाशन हो रहा है उनमें 'आप्त-परीक्षा' का प्रकाशन भी समाहित है । अतएव जयन्तीके समायोजक एवं ग्रन्थ प्रकाशनके प्रबन्धक जहाँ धन्यवादार्ह हैं वहीं अपनी धर्मपत्नीकी स्मृतिमें इस ग्रन्थ के प्रकाशनार्थ पच्चीस हजार रुपये के प्रदाता श्री राय देवेन्द्र प्रसादजी जैन एडवोकेट, गोरखपुर भी धन्यवाद के योग्य हैं। राय साहब के साथ मेरे कई वर्षोंसे वात्सल्यपूर्ण आत्मीय सम्बन्ध हैं । उनकी और उनके परिवारकी धर्मनिष्ठा प्रशंसनीय है । राय साहबकी धर्मपत्नी आजमगढ़ के वैष्णव परिवारसे, जो वहाँ का प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित परिवार है, उनके जैन परिवार में आयी थीं । किन्तु उनकी धर्मनिष्ठा इतनी उच्च थी कि प्रतिदिन दर्शन, पूजन, पाठके अलावा मुनियोंको आहारदान देनेमें सदा प्रवृत्त रहती थीं । हम उन्हें भी इस अवसर पर स्मरण करते हैं ।
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हमें प्रसन्नता है कि प्रिय डॉ० फूलचन्द्र जी जैन प्रेमी - अध्यक्ष, जैन दर्शन विभाग, सं० संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी ने इसके प्रूफ संशोधन आदि में सहयोग किया है, इसके लिए मेरा उन्हें हार्दिक मंगल आशीर्वाद है ।
स्वच्छ और सुन्दर मुद्रणके लिए महावीर प्रेसके स्वामी प्रिय बाबूलालजी जैन, फागुल्लको मंगल आशीर्वाद है । इति शम् ।
बीना-इटावा (सागर), म० प्र० २० जून, १९९२
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(डॉ०) दरबारीलाल कोठिया सेवा-निवृत्त रीडर, जैन-बौद्ध दर्शन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
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