Book Title: Anusandhan 2017 07 SrNo 72
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 21
________________ १४ अनुसन्धान-७२ अभ्यर्थना करी छ । प्रस्तुत कृतिनी हस्तप्रत तपागच्छनायक श्रीजयचन्द्रसूरिजीना शिष्य पण्डित श्रीजिनहर्षगणिना शिष्य 'सिद्धान्तधर्म' नामना मुनिए सं. १५१८मां लखी छे । श्रीविमलगच्छीय उपाश्रयनो भंडार (देवसानो पाडो-अमदावाद)मांथी प्रस्तुत कृतिनी हस्तप्रतनी Xerox सम्पादनार्थे प्राप्त थई छे । ते बदल विमलगच्छीय ग. प.पू.आ.श्री प्रद्युम्नविमलसूरिजी म.सा.नो, पू. जम्बुविजयजीना शिष्य पू.पं. पुण्डरीकविजयजी म.सा.नो, हिरेनभाई पण्डितजी (पालीताणावाळा)नो तथा विमलगच्छीय भण्डारना कार्यवाहकोनो खूब-खूब आभार । (२) वस्तुपालप्रशस्ति : प्रस्तुत कृति पण कवि बालचन्द्रनी ज रचना छे । कृतिमां अनुक्रमे वंशाधिकार, शत्रुञ्जयाधिकार विगेरे १३ अधिकारो छे । दरेक अधिकारमां वस्तुपाले ते ते क्षेत्रमा करेला जिनमन्दिर, उपाश्रय, सत्रागारादि ऐतिहासिक कार्योनी विगत छे । तेमां य खास करी पेटलाद, धोळका, धंधुकादिकना अधिकारमा वर्णवायेली विगत इतिहासविदो माटे घणी महत्त्वपूर्ण छ । कवि जिनहर्षे सं. १७९३मां रचेला वस्तुपालचरित्रमा आ ज प्रशस्तिमांथी घणा श्लोको उद्धर्या होय तेम लागे छे । अमे प्रस्तुत कृतिमां तुलना माटे वस्तुपालचरित्रना ते श्लोकक्रमाङ्क पण नोंध्या छ । ... प्रतमा उल्लेखित सूत्रधार साल्हण द्वारा प्रशस्ति उत्कीर्ण करायानी विगत जोतां मूळ शिलालेख परथी ज आ कृति ताडपत्र के कागळनी प्रतना उतारारूपे लखाई होवानुं अनुमान थाय छे. जो के अक्षरोना मरोडादि उपरथी कृतिनुं लेखन पण १६मी सदी पूर्वे थयुं होय तेवू जणातुं नथी. एटले के आ प्रतलेखकनी सामे जिनालयनो मूल शिलालेख न होई कागळनी के ताडपत्रनी कोई हस्तलिखित प्रत होय तेवं मानवं वधारे योग्य लागे छ । खास तो आवा अमूल्य दस्तावेजने आपणा सुधी पहोंचाडवा बदल ते-ते प्रतलेखकोनो, साथे-साथे प्रतनी हस्तप्रत साचवी राखवा बदल तेमज सम्पादनार्थे तेनी नकल

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