Book Title: Anusandhan 2017 07 SrNo 72
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 116
________________ जून - २०१७ १०९ हिरण्यगर्भ को वेद का कर्ता मानते हैं । दूसरे विद्वान अष्टक आदि ऋषि को याद करते हैं । ऐसे अन्य भी मत हैं । मीमांसक - कादम्बरी आदि के कर्ता के विषय में कोई विवाद नहीं है । लेकिन वेद के कर्ता के विषय में हिरण्यगर्भ, अष्टक आदि अनेक ऋषिमुनिओं के नाम सुने जाते हैं। इस तरह मतभेद होने से कर्ता का स्मरण विवादग्रस्त है, इसलिए वह मिथ्या है। उत्तरपक्ष - कर्तविशेष विवादग्रस्त होने पर कर्तविशेष के स्मरण को ही हम असत्य कह सकते हैं, सामान्यतः कर्तृस्मरंण को नहीं । मतलब कि इन विवादग्रस्तता से वेदों का कोई न कोई कर्ता जरूर है इस बात का अपलाप नहीं हो सकता । मीमांसक - हम वेद को किसी की कृति नहीं मानते । अतः वेद के कर्तसामान्य में भी मतभेद तो है ही। इसलिए वेद में सामान्यतः कर्तृस्मरण विवादग्रस्त होने से उस स्मरण को मिथ्या समझना चाहिए । उत्तरपक्ष - अरे! वैसे तो कर्तृ-अस्मरण थी विवादग्रस्त ही है, तो उसको क्यों न मिथ्या समझा जाय ? । मीमांसक - वेद का यदि कोई कर्ता होता तो ब्राह्मणादि तीनों वर्ण के लोक वेदोक्त अर्थ के अनुष्ठानकाल में उसका स्मरण अवश्य करते । किन्तु कर्ता के स्मरण के बिना भी विश्वसनीय लोग प्रवृत्ति करते हैं, इसलिए वेद का कोई कर्ता नहीं है। उत्तरपक्ष - आप खुद ही सोचिये कि अन्य बौद्धादि आगमों के विषय में भी इसी युक्ति का तुल्यरूप से प्रयोग हो सकता है या नहीं ? । तात्पर्य यह है कि उपरोक्त युक्ति अन्य आगम में भी तुल्यरूपेण लाग हो सकेगी, तो उन आगम को भी अपौरुषेय मानने की आपत्ति आएगी । वैसे यह नियम भी नहीं है कि इष्ट अर्थ के अनुष्ठानकाल में उसके कर्ता का स्मरण करके ही अनुष्ठाता लोग प्रवृत्ति करे । पाणिनि आदि द्वारा विरचित व्याकरण से उपदिष्ट शाब्दिक व्यवहार का जब जब पालन किया जाता है तब वे व्यवहारकर्ता पहले नियमतः पाणिनि आदि का स्मरण करे

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