Book Title: Anusandhan 2017 07 SrNo 72
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 125
________________ ११८ अनुसन्धान-७२ प्रमाणो पण मळी शके. कारण के उपाध्यायजी भगवन्ते समवायसिद्धिनी चर्चा अनेक प्रकरणोमां करी छे. जेमां लगभग समान दलीलो चर्चाई छे. अटले प्रस्तुत तर्कमा प्रयोजायेली पदावलीनी समान पदावली अन्य ग्रन्थोमां मळे ज. अने तेना आधारे प्रस्तुत पाठ त्रुटित छे एम समजी पण शकाय अने तेने सुधारी पण शकाय. जेम के उपाध्यायजीओ ज रचेली अनेकान्तव्यवस्थामां आम पाठ मळे छे : "न च घटादिसमवेतनाशमात्रे न घटादिनाशो हेतुः, घटादिकालीनतद्वृत्तिक्रियासंयोगविभागवेगद्वित्वादिनाशे व्यभिचारात्; किन्तु प्रतियोगितया स्वप्रतियोगिसमवेतत्व-स्वाधिकरणत्वोभय-सम्बन्धेन नाशवन्नाशत्वावच्छिन्न एव स्वप्रतियोगिसमवेतत्वेन नाशत्वावच्छिन्नस्य हेतुत्वात्... ॥" आ पाठना आधारे बृहत्स्याद्वादरहस्यनो उपरोक्त पाठ सहेलाईथी सुधारी शकाय तेम छे. पण आवा समान्तर सन्दर्भो तरफ सम्पादकश्रीनुं ध्यान नथी गयुं जणातुं. अने आ पाठ त्रुटित छे अवू पण कदाच तेओना ध्यान पर नथी आव्यु. अने अटले तेओओ आम छाप्युं छे - "घटादिकालीनसंयोगादिध्वंसे व्यभिचारवारणाय प्रतियोगितया ।" वास्तवमा 'प्रतियोगितया' आगळ वाक्य पूरुं नथी थतुं, पण आगळ चालु रहे छे. परन्तु जो आ रीते वाक्य पूर्व करी देवामां आवे तो ओनो अवो भळतो ज अर्थ नीकळे के 'घटनी विद्यमानतामां थता संयोगादिना ध्वंसमां व्यभिचारना वारण माटे प्रतियोगितया पद छे.' तात्पर्यतः आवा ध्वंस प्रतियोगितासम्बन्धथी ते संयोगादिमां नथी रहेता अवो खोटो मतलब आनो नीकळे. अने सम्भवतः आवा खोटा मतलबना आधारे ज भानुमतीकारे आ पाठने स्वमतना समर्थनमां टोक्यो छे, अने परमगुरुनी प्ररूपणानुं खण्डन कर्यु छे. सम्पादननी क्षतिने लीधे सर्जायेलो ओक खोटो पाठ अने तेनुं भळतुं अर्थघटन आपणने साची वातथी केटले दूर लई जई शके तेनुं आ ओक विस्मयजनक उदाहरण छे.

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