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जून २०१७
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'अष्टापदतीर्थस्तवन'मां अष्टापद साथै सम्बन्ध राखती पुष्कळ विगतो गूंथी लेवाई छे. क. ९मां 'घंटो' वाचनभूल जणाय छे. 'घाट' सुसंगत बने. क. २७मां 'झमाउल' छे, ते 'झलामल' होई शके.
अनुयोगद्वारसूत्रना पाठनी झीणी चर्चा शास्त्रीय विषयोना अभ्यासीओने लाभदायक थशे. श्रीमती नलिनी बलवीरनो प्रतिमासौन्दर्य विषयक लेख पठनीय छे. भाषा क्यांक क्लिष्ट - अस्पष्ट रही छे, परन्तु विदुषी लेखिकानो गहन अभ्यास लेखमां प्रत्यक्ष थाय छे. आवा भावात्मक विषय पर एक अ - जैन विदुषी लखे ए वात ज अत्यन्त आदरणीय छे.
श्रीकृष्ण विशे प्राकृत अने अपभ्रंश भाषाना जैन साहित्यमां व्यापक सर्वेक्षण करीने, तथा अन्य परम्पराना साहित्य साथे तुलना करीने लखायेलो श्रीसागरमलजीनो लेख श्रीकृष्ण विशे घणी सामग्री आपणी जाणकारी माटे एकत्र करी आपे छे.
'नन्द्यावर्त' विशेनो ढांकीसाहेबनो लेख लांबा समयथी चाली आवती भ्रान्तियुक्त मान्यताने प्रकाशमां लावे छे. संशोधन द्वारा ज आवी भ्रान्तिओनुं परिमार्जन थई शके. संशोधन द्वारा आवी माहिती मळ्या पछी एनो यथास्थाने अमल करवानी फरज सङ्घनायकोनी छे.
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अनु० नो आ अङ्क बहुमुखी प्रतिभाना स्वामी डो. मधुसूदन ढांकीना स्मृति विशेषाङ्क रूपे प्रगट थयो छे.
अङ्कना पूर्वार्धमां संशोधन/सम्पादन लेखो अपाया छे; उत्तरार्धमां ढांकीसाहेब विषयक लेखो मूकाया छे. ढांकीसाहेबनी कीर्ति सर्वदिग्गामिनी हती. 'विद्वान् सर्वत्र पूज्यते' नी उक्ति तेमना जीवनमां सार्थक थई हती. भारत अने भारत बहारना भिन्न भिन्न विद्याशाखा ओना विद्वत्समाजोमां तेमनुं नाम अत्यन्त आदरभेर लेवातुं हतुं. ढांकीसाहेब विशे एवा केटला क्षेत्रोना केटलाय विद्वानोने कंईक कहेवानुं मन हशे ए बधाना मनोभावो एकत्र करवा मुश्केल छे. कोई सक्षम विद्यापीठ ए काम करे एवी आशा राखीए. अनुसन्धान द्वारा एक अंजलि अपाई छे, अने तेनी एक विशेषता छे. अहीं संगृहीत स्मृतिलेखो