Book Title: Anusandhan 2017 07 SrNo 72
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 133
________________ १२६ अनुसन्धान-७२ २४६ व(च) - २५४ सौख्या० व(च)[स] विधया विद्यया ३२१ विधा० विद्या० ४६ सौख्य एक अजैन खण्डकाव्य उपर जैनाचार्य द्वारा रचित टीका आ अङ्कमां प्रगट थाय छे. मूल कृति अजैन छे, एटलुं ज नहि, शृङ्गाररसनी रचना छे, तेम छतां जैन आचार्य एना पर टीका लखी शके छे. आ शुद्ध साहित्यिक अभिगम छे. जीवन प्रत्येनो सन्तुलित अभिगम पण छे. अने तेने शक्य बनावे छे अनेकान्त दृष्टि. टीकाना अन्ते टीकाकार लखे छे : "आ टीका रचवाथी उपार्जन थयेल पुण्य वडे लोको निर्वाणनी प्राप्ति करो!" _ 'केटलीक लेखपद्धतिओ' वांचतां मात्र संस्कृत भाषानी मजा ज नहि, पत्रलेखक-पत्रपाठक वच्चेना भावसंबंधोनी भीनाश पण अनुभवाय छे. श्राविकालेखनी १०मी पंक्तिमां स्वस(सं)दर्शन... ए विशेषण छे तेमां "पोताना मुखना दर्शनथी आनन्द ऊपजावनारी" एवो भाव जणाय छे, आथी मुखवाचक शब्द अहीं होवो जोईए. 'सदशन' शब्द मुखवाचक बनी शके. आवा कृत्रिम नामो योजवानी परिपाटी साहित्यक्षेत्रे हमेशां रही छे. वळी आनाथी पहेलां रूपनी वात पण थई छे. आथी स्वसदशन... एवो पाठ विचारी शकाय. 'सदशन' माटे आधार गोतवो रह्यो. 'केटलांक पत्रो' विद्वान मुनिजनोना पाण्डित्यसभर व्यवहारोनां चित्रो पूरा पाडे छे. 'लेखपद्धति' जेवी कृति पण पत्रलेखननो महिमा कोई समये केटलो हृदयपूर्वक स्वीकारायो हतो तेनी झांखी करावे छे. आ संग्रहमां अवसेरी, सारा, रावा, रणरणक जेवा बोलचालनी भाषामांथी संस्कृतमा प्रवेशेला शब्दो छे. श्रीतिलकविजय कृत सुविधिनाथस्तवनमां क. ३मां 'पहिडइ' शब्द छे, जे व्युत्पत्तिनी दृष्टिए महत्त्वनो छे. वचनथी फरी जq, प्रार्थनानो भंग करवो - एवो अर्थ नीकळे छे. आना परथी ज 'फेडवू' आव्यो हशे. 'फेड'नो अर्थ 'पूरुं करवू, अन्त आणवो' - एवो सीमित रही गयो.

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