Book Title: Anusandhan 2017 07 SrNo 72
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-७२
आ अङ्कमां बीजी एक प्रौढ स्तोत्रकृति पार्श्वजिनस्तवन यमकबद्ध होवाथी कर्णप्रिय बनी छे. भाषा प्रासादिक छे. थोयजोडानो जे एक प्रचलित राग छे ते ढबे आ गाई शकाय छे. यमकना सर्जन माटे सन्धि, समास, अनेकार्थक शब्दो अने अल्पपरिचित शब्दोनी मदद लीधी छे. बेर, वृष, निर्हाद, सा-कर वगेरे आवा अल्प प्रचलित शब्दो छे.
आ अङ्कनी अमूल्य उपलब्धि छे - वादीन्द्रवादिदेवसूरिचरितम्. श्वेताम्बर परंपराना आ दिग्गज आचार्यनां नाम अने कामथी सौ परिचित छे. आवी धुरन्धर प्रतिभाना जीवनचरितनुं न रचाय तो ज नवाई. हवे अपूर्ण तो अपूर्ण, पण जीवनचरितनुं महाकाव्य ज्ञानभण्डारमाथी बहार आव्युं छे. महाकाव्यनी शैलीए रचायुं होवाथी इतिहास के जीवनवृत्तान्त आपवानो आमां उपक्रम न होय. कवि आ महापुरुषना गुणग्राम अने काव्यरस सर्जनना आशयथी रचना करे छे, तेम छतां, घणी बधी इतिहासोपयोगी विगतो आमांथी मळी रहे छे, अथवा अन्यत्र प्राप्त विगतोने नवो आधार प्राप्त थाय छे. सम्पादकोए आनी सविस्तर चर्चा करी छे.
. वादिदेवसूरिना घणा शिष्यो हता. एमांना एक श्रीपद्मप्रभसूरि तपस्वी हता, नागोरमां तेमने 'तपस्वी' बिरुंद मळ्युं हतुं. पद्मप्रभसूरिनी परम्परा नागोरी वडगच्छ नामे ओळखाई. जयशेखरसूरि ए परम्परामां थया. आगळ जतां आ ज परम्परा पार्श्वचन्द्रसूरिना नामे पार्श्वचन्द्रगच्छ तरीके आगळ चाली.
प्र. १, श्लो. २मां अम्बर शब्द आगळ प्रश्नचिह्न मूकेलुं छे. आ पाठ अशुद्ध नथी. दिगम्बरविजय अने श्वेताम्बर मान्यताना मुद्दा कविए स्तुतिमां सात विभक्तिमां वणी लीधा छे अने ए रीते वादिदेवसूरिना प्रदाननो महिमा कर्यो छे. आ श्लोकमां 'वल्लते' क्रियापदनो अर्थ 'आहार करे छे' एवो नीकळे छे.
प्र. २मां श्लोक ६७मां बाल पूर्णचन्द्र चणा आपीने द्राक्ष लेवानो वेपार करे छे - ए वात आवे छे ते सुशक्य छे. अने 'धीवर'नो अर्थ 'माछीमार' ज लेवो जोईए.* व्यापार कंइ विद्वानो साथे ज थाय एवं न होय. भरुच तो समुद्रतट वाळो प्रदेश छे, धीवरो-माछीमारोनी वसती होय. पछात विस्तारोमां * आ विधान साथे सम्मत थर्बु मुश्केल छे. धीवर एटले बुद्धिमान् । -सं.

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