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अनुसन्धान-७२
थती होय छे जे क्यांक खूटती कडी पूरी पाडती हशे, तो क्यांक कोई भ्रमशङ्कानुं निरसन करती हशे, ने क्यारेक तो नूतन अज्ञातपूर्व जाणकारी बहार लावती हशे. विद्वानो द्वारा अद्यावधि जे इतिहासलेखन ग्रन्थस्थ थयुं होय, ते पछी मळेली आवी सामग्रीनो यथास्थाने समावेश करीने ते-ते इतिहासने संवर्धितupdate करवानुं काम पण थर्बु जोईए. अन्यथा, प्रकीर्णपत्रोमांथी जडेली विगतो पत्र/पत्रिकानां पानांओमां पूराइने पाछी 'खोवाइ' जई शके छे. कोई पण ग्रन्थना पुनःप्रकाशन पूर्वे, तत्सम्बन्धी सामग्री एकत्र करीने पूर्ति करी लेवानुं कर्तव्य सम्पादकोनुं गणाय. आपणा सम्पादक मुनिओ आ कर्तव्य तरफ बेध्यान रहेता जोवा मळे छे.
___ मन्त्रीश्वरे दिगम्बर जिनालयना पण जीर्णोद्धार वगेरे कराव्या छे. आ प्रशस्तिमां 'क्षपणक' शब्द आवे छे. दिगम्बरमुनिना सम्बन्धमां आ शब्द वांच्यानुं याद आवे छे. अहीं 'खत्तक' शब्द आव्यो छे. तेनो अर्थ सम्पादके आप्यो नथी. ए गवाक्ष-गोख छे के बीजुं कंइ छे ?
सर्वविजयजी कृत 'पुण्डरीकशब्दशतार्थी' कौतुककारी रचना छे. पुण्डरीक शब्दना अनेक अर्थ तो छे, पण सो नथी; परन्तु अहीं सो वखत आ शब्द गूंथी लेवामां आव्यो छे अने उच्चारभेद, सन्धिछेद, अक्षरोनां परिवर्तन वगेरे द्वारा नवा नवा अर्थ नीपजाववामां आव्या छे. आ एक प्रकारनी शब्दरमत छे जे विद्वानोने माटे छे.
सप्तवर्गाक्षरवरेण्य... नामक रचना पण एवी ज कौतुकरंगी विद्वद्भोग्य कृति छे. कर्तानो उद्देश सज्जन-दुर्जन अथवा उत्तम-नीच, धर्मी-अधर्मीनां चित्र प्रस्तुत करवानो छे अने ते माटे भाषाना आधारे रमतियाळ ढबे शब्दचित्रो सर्यों छे. बाराखडीना एक-एक अक्षर उपरथी सारामां शुं होय, नठारामां शुं होय ते हळवाशथी वर्णव्युं छे.
सम्पादकश्रीए कृतिगत शब्दोनी भाषाकीय तपास करवानो श्रम उठाव्यो छे. कृतिकारे पोते ज कृतिमांना शब्दोना अर्थ नोंध्या छे, पण एम करतां जे पर्यायो आप्या छे ते पण तपास मांगे छे ! सम्पादकजीए ए पण तपास्युं छे. कर्ता विनोदप्रिय तो छे ज, परंतु व्यवहारजगतना सुज्ञ पुरुष छे. 'सारा' माणसो अने 'खराब' माणसो विशे एक एक श्लोकमां ६-६ वातो गूंथवामां आवी छे, जे जगतना निरीक्षण-परीक्षण वगर सूझे नहीं.