Book Title: Anusandhan 2017 07 SrNo 72
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 128
________________ जून 1 २०१७ श्लो. ३४मां 'थल' शब्द 'मरुभूमि'ना अर्थमां नोंध्यो छे. राजस्थानमां आ शब्द आज अर्थमां प्रचलनमां छे. आ रचनामां जूनी देश्य भाषाना शब्दो घणा छे अने ते आजनी भाषाओमां हाजर हशे ज. देश्य, अपभ्रंश, संस्कृतना कोशो उपरांत राजस्थानी, बंगाळी, जूनी गुजरातीना कोशोनी पण मदद लेवी पडे एवं छे. मुनिश्री प्रेमविजयजी उग्र तपस्वी, अभिग्रहधारी महात्मा हता, साथे साथे ज्ञानोपासक, साहित्यप्रेमी पण हता, कवि हता ने कवि हता एटले रसिक पण हता ज. एमनी घणी लघु रचनाओ मळे छे. तेमनी गुजराती कृतिओना संग्रहनुं एक मुद्रित पुस्तक मारे हाथ चडेलुं ने ते, ते वखते पू. प्रद्युम्नसूरिजी म. ने मोकली आपेलुं. आचार्य श्री प्रेमविजयजीनी रचनाओनो संग्रह प्रकाशित करवा इच्छता हता, ते थई न शक्युं. अहीं प्रकाशित नमस्कार संग्रहमां 'कुम्भलभेर 'नो उल्लेख छे, जे सूचवे छे के कविना समयमां कुम्भलमेर-कुंम्भलगढ़नी यात्रा जैनोमां प्रवर्तमान हती. ते पछी जैनोए कुम्भलगढने विसारे पाडी दीधुं छे. कडी १०मां पांचमी पंक्तिमां 'लोटीण उतारइ' छपायुं छे त्यां 'लोटीणउ तारइ' एम वांचवुं जोईए. आ अंकनी महत्त्वपूर्ण रचना छे - कल्याणविजयजी रास. सम्पादक मुनिवरे रासना नायक, रास अने रचनाकार बधा विशे पार्श्वभूमिकानी विगतो पूरी पाडी छे, रासनुं महत्त्व रेखांकित करी आप्युं छे. रास कवित्वसभर छे, रसिक छे, भावोत्पादक छे. थोडां शुद्धिस्थान छे - क. २० क. २५ क. २५ क. ३८ क. ८१ क. ८५ क. १०७ मुझ पांडुर प्रकार परिपरि माडली १२१ गाई पापणी मुझ मन अहीं 'पाडउ' कल्पवानी जरूर नथी. पांडूर - पंडूर शब्द पुष्ट, मोटुं, विशाळ एवा अर्थमां छे. प्राकार (गढ) परि परि माउली सहु गाई पाणी

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