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अनुसन्धान-७२
जान सकता है ? अत: उन विषयों के प्रतिपादक वेद अपौरुषेय ही हो सकते
हैं ।
बन्दी
कल्पना एवं ऊहा के बल पर मनुष्य क्या क्या नहीं बोलते ? लोक में कहीं भी दिखाई न देनेवाली बातें कथाओं में सुनने नहीं मिलती ? वैसे ही परलोक, यज्ञ, स्वर्ग सब काल्पनिक हैं । उससे वेदों की अपौरुषेयता सिद्ध नहीं हो सकती ।
इसके अलावा, वेदों में कितने ही कामना के सूचक वाक्यादि देखने मिलते हैं । जैसे कि 1 'हमारे बच्चों पर कोप मत करना, हमारे आयुष्य की रक्षा करना, हमें अन्न दो, वस्त्र दो, गाय दो' । ऐसे वाक्य क्या सूचित करते हैं ? आशा लेकर बैठे हुए किसी प्राकृत मनुष्य के ही ये सब उद्गार हैं ऐसा स्पष्टत: प्रतीत नहीं होता ? 'अक्षों से मत खेलो' इत्यादि चेतावनी द्यूतक्रीडा के अनिष्टों को देखकर ही दी जा रही है । तब वेद अपौरुषेय कैसे हो सकते हैं ?
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कोड यदि वेद पुरुषरचित होते तो उनके कर्ता का उल्लेख अवश्य मिलता । लेकिन वैसा उल्लेख कहीं नहीं मिलता । आपने जो बातें बताई वे सब मानवकुल के हित की बातें हैं । हित में प्रवर्तन और अहित से निवर्तन शास्त्र का लक्ष्य होता है । वह कार्य यदि अपौरुषेय वेद करे तो उसमें क्या आपत्ति हो सकती है ? |
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बन्दी सभी मन्त्रों के ऋषियों का कीर्तन होता है । मन्त्रों के उच्चारण से पूर्व हम गृत्स्नम, विश्वामित्र, अघमर्षण आदि उन उन मन्त्रों के रचयिता पुरुषों को याद करते ही हैं । बहुत सारे ऋषियों के द्वारा रचित मन्त्रों का सङ्ग्रह वेद में हुआ है । इसलिए यद्यपि वेदों का कोई एक कर्ता नहीं है, तथापि वे पौरुषेय हैं इस बात का अपलाप हो नहीं सकता ।
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कोड ऋषियों मन्त्रद्रष्टा होते हैं, मन्त्रकर्ता नहीं । उन्होंने अपने तप के प्रभाव से मन्त्रों की जो शाश्वत आनुपूर्वी थी, उसका साक्षात्कार किया । उन साक्षात्कृत मन्त्रों का उपदेश उन्होंने लोक को दिया इसलिए हम उनके नाम का तत्र तत्र स्मरण करते हैं । न कि उन ऋषियों ने किसी नये मन्त्र की रचना की है इसलिए । इस तरह ऋषि वेद के कर्ता सिद्ध न होने से
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