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अनुसन्धान-७२
एक पुरुष मइ दीठउ परो, दीहइ सु जीवइ रातिई मरइ, सूए लाभ जीवत छेहउ, बोलउ राजन ते पुरुष केहउ... १९ [झांपउ] नारी एकली असंभम वात, भमइ अ गाम न हाथ न पाग, वाउ पीइ उपहरी चडइ, हीए दोर न हेठइ पडइ... २० [गुंडी][पतंग] चरण नहीं पुण चलइ नयण नवि देखइ सोइ, चढण पंच तस सवल तास गति न लहइ कोइ, पाप फुरत नवि शंक पुन्य तस छेह न आवै, रूपवंत अति चतुर तास गुण केता पावै, यश प्रताप त्रिभुवन प्रगट हेज आणि त्रीय उचरइ, कहउ कंत ते नर कवण अवि (?) प्रचंड सहु फिरइ... २१ [मन] सोवन पाया सोवन ईसा, दो जन बइठा करै जगीसा, फोडइ फोफल खावइ पान, दो जन वच्चै बावीस कान... २२
[रावण-मंदोदरी] पुरुष एक दोइ नयण वयण सोहइ तसु दाढी, .. उछव मंगल हर्ष तेहसुं प्रीति जु गाढी, दरदीवाणइ मान जाजुं काजइ सलहीअइ, ता विण न रहइ मास तास गुण केता कहीयइ, सुभ लक्षण सुंदर सुघट धर्म कर्म मंगल करण, हेज आणि प्रीय उचरइ कहउ त्रीय ए नर कवण... २३ [श्रीफल] चंद्र तणइ आकारि नयण नइ हर्ष करती, हथिणापुर उपनी अंगनि सेजइ पोढंती, चउ अक्षर तस नाम पुरुष नाम मन मोहंती, पतिव्रता नहीं तेह पंथीजन साथि चलंती, नरनारी मन वल्लही पुन्यवंत सु रमइ अपार, ता विण प्रेम न ऊपजइ कंता लेहु विचार... २४ [अंगाकरी] (?) अठ वयण झगमगइ नयण सोलह तसु लिज्जइ, युगल जीव दोइ हथ चरण दोइ तास कहिज्जइ, रसना पनरह जास तास त्रिभुवन जण पुज्जइ, अहिनिशि ध्यावइ जेह तेह मनवंछित सिज्जइ,