Book Title: Anusandhan 2017 07 SrNo 72
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 112
________________ जून २०१७ - १०५ वेदों का रचयिता कोई पुरुष यदि होता, तब तो उनकी प्रामाणिकता उस पुरुष पर निर्भर होती । और ऐसा कोई पुरुष हो नहीं सकता कि जो दोषमुक्त हो, जिसका वचन सर्वथा प्रमाणभूत हो, यह तो हम पहेले ही कह चूके हैं । अतः वेद को निर्दुष्ट-प्रमाणभूत मानने के लिए उसे अपौरुषेय ही समझना चाहिए । उत्तरपक्ष आप इसी बात को अलग ढंग से सोचिए । वेदवाक्य यदि अपौरुषेय हैं तो भी वे अपने विषयभूत अर्थों का स्वतः ज्ञान उत्पन्न करने का व्यापार नहीं कर सकते । क्योंकि यदि वे स्वतः ज्ञान उत्पन्न कर सकते तब तो वे नित्य होने से ज्ञानोत्पत्ति सतत होती रहनी चाहिए, परन्तु ऐसा तो नहीं होता । इससे यह सूचित होता है कि वेदवाक्य स्वयं ज्ञानोत्पत्तिव्यापार में संलग्न नहीं होता, अपितु पुरुषों के द्वारा अभिव्यक्त ऐसे अर्थप्रतिपादक जो संकेत, उससे जन्य जो अर्थबोधसंस्कार, उसकी सहायता से प्रेरणावाक्य अपने विषय की प्रतीति को उत्पन्न करता है । इसका मतलब यह हुआ कि शब्दों का किस अर्थ के साथ वाच्य - वाचकभाव सम्बन्ध है इस सङ्केत को अध्यापक पुरुष प्रगट करते हैं । जो लोग इस सङ्केत को जानते हैं, उनके 'इस शब्द से यह अर्थ समझना चाहिए' ऐसे संस्कार रूढ हो जाते हैं, तब उन्हें वेदवाक्य पढकर अर्थबोध होता है । इस प्रकार वेदवाक्य नित्य हो, अपौरुषेय भी, तब भी उनके अर्थ को जानने के लिए पुरुष की अनिवार्य आवश्यकता है । I अब आपके मत से तो सभी पुरुष रागादि दोषों से व्याकुल ही होते हैं, इसलिए उनके द्वारा प्रयुक्त सङ्केतों से जो संस्कार रूढ होंगे वे भी अयथार्थ ही होंगे । पुरुषप्रयुक्त सङ्केत यथार्थ होते हैं, लेकिन उनके वचन अयथार्थ होते हैं, ऐसा स्वीकार करना नामुमकिन है । नतीजा यह निकला कि वेद को स्वतः प्रमाणभूत व अपौरुषेय मानने पर भी सङ्केतकारक पुरुषों में दोष होने से पुरुषसङ्केत से उत्पन्न वेदज्ञान तो अप्रामाणिक ही सिद्ध होगा । इस प्रकार वेदवाक्यों को अपौरुषेय मानना व्यर्थ परिश्रम ही हुआ । सङ्क्षेप में कहें तो अर्थ समझने के लिए पुरुष की अपेक्षा रहती ही है । और पुरुषमात्र सदोष होने के कारण वेदवाक्यजन्य ज्ञान में अप्रामाण्य आ पडता है । तो वेदों की प्रामाणिकता अक्षुण्ण रखने के लिए उन्हें 1

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