Book Title: Anusandhan 2017 07 SrNo 72
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 94
________________ जून २०१७ - ८७ रूप जमाई जायो. मेह वरसंतो बहू रज ऊडें लोह तरइं ने तरणुं बूडे... कहयो० ७ स्नेहरूप मेह वरसंतां कर्म रूप रज, ते उडइं. लोह सरिखो ज्ञानवंत बलिष्ट होय ते तरें, तरणा सरिखो विषय लालची जे छे ते बूडइं. तिल फरें ने घाणी पिलाई, घरटी दाणें करिय दलाई... कहयो० ८ तिल सरिखो कर्म करई तेहने समुदायें प्रमाद, घाणि सरीखी चेतना पीलाइ. ते कर्म छइ [रूपि]दाणे करी चेतना रूप घरटी प्रमादी थाइ ते दलीइं . बीज फले नें शाखा उगइ, सरोवर आगले समुद्र न पूगई... कहयो० ९ बीज ते बोध बीज फलई, क्रिया करें ते शाखा, ने ज्ञानरहितने दुःख पालवइ ज्ञानसरोवर आगल संसारसमुद्र पणि न पूगई. पंक झरे ने सरवर जांमे, भमें माणस तिहाँ घणे विसामे... कहयो० १० ते चेतना करो थइनइ ते झरे तीवारें आत्मा रूप सरोवर जामे. तिहां घणो प्रमाद रूप विसामें ने मनुष्य संसारमां भमे. चरित्र रूप वेगें चाले ते न भमइ. प्रवहण उपर सायर चालें, हरण तणें बल डुंगर हाले... कहयो० ११ प्रमादि ते प्रवहण सरिखो आत्मा तेहनें हेंठें घालिनई उपर संसार समुद्र चालइ छइं. हरिण सरिखा कर्मने बले डुंगर सरिखो आत्मा अस्थिर थाय. एहवउं जाण. एहनो अर्थ विचारी कहयो, नहितर कोई गरव म धरयो ... कहयो० १२ प्राणिइं ते चेतन नामइ जीवनी बुद्धि करवी, प्रमाद न करवो, नहितर मन माहि गर्व कोइ न धरस्यो. श्री नयविजय विबुध ने सीसें, कहि हरीयाली मनह जगीसें... कहयो० १३ श्री नयविजय पंन्यासने चेले पोताना मनने हरखे एह हरियाली कहि. ए हरीआली जे नर कहेरौं वाचक जस कहे ते सुख लहसे... कहयो० १४ जे एह हरियालीनो अर्थ जाणस्यें अथवा कहस्यइ ते जसविजय पाठक कहै छै जे ते अनंत सुख लहस्यइ. पंडित होय ते एह हरिआली अर्थ विचारी नें कहेवा.

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