Book Title: Anusandhan 2017 07 SrNo 72
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
अनुसन्धान-७२
ए परमारथ ग्यान सुंणी करि, आतमध्यान सुध्यावउ, विनयसागर मुनिवर उपदेसइं, धरमई निज मति लावउ... चतुर० ८
ए वात श्रीजिणवरइं पंचम आरानी स्थिति जाणी सिद्धांत मांहि कही, एहवउ जाणी उत्तम प्राणी सुभमति आणी मन-वचन-कायाइं करी जिनधर्म करिवउ. ए खरतरगच्छे श्रीसुमतिकलश मुनि शिष्य पंडित विनयसागर मुनिवर कृत उपदेश सांभलीयइं धर्म सुंणीयइ.
कहयो पंडित ते कुण नारी, वीस वरसनी अवध विचारी... कहयो० १ जाणइ ते चेतना नारी, ते नारी कुण ? वीस वरसनी अवधि दीजई छई, ते माटई... दो पिताइं तेह निपाइ, संघ चतुरविध मनमां आइ... कहयो० २
ए बे पिताइं निपाई छइ नारी, ते नारी चतुरविध संघना मनमां आवि. कीडिइं एक हाथि जायो, हाथी साहमो ससलो धायो... कहयो० ३
निगोद मांहे जे अव्यक्त क्षोपशम ते कीडि तेहथी व्यवहार ज्ञान होइ ते हाथि जाणवो. तेहथी साहमो जीव अज्ञानि थाय ते ससला सरिखो कर्म ते सांमो थयो. विण दीवें अजूवालूं थाय, कीडीना दरमाहे कुंजर जाय... कहयो० ४
दीवा विना अजूआलू थाय ते चेतन जाणवो. तेह मोहग्रस्त थाई ति वारे • कीडीदर जे निगोद, ते मांहि हाथि सरखो ज्ञानवंत पणि जाणिइं (जाइ). वरसै आगि नइ पाणी दिवें, कायर सुभट तणा मद जी... कहयो०५
ते चेतनाने अधिकारे अग्नि सरिखों कर्म वरसै त्यारे पाणी सरिखो खिमावंत थाइ ते दिपइ. विषय-कषायना भयथी संसारी कांतार [कातर] थाइ ते मोह रूप सुभटनइं जीपइं. तिण बेटीइं बाप निंपायो, तेणें तास जमाइ जायो... कहयो० ६
तेह चेतनरूप बेटीइं उपयोग रूप बाप निपायों छइं. तेणे बापइं उपयोगात्मा

Page Navigation
1 ... 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142