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प्रथम अधिकार
११ छह सौ प्राभूत-प्राभूत को चौबीस के द्वारा गुणा करने पर बाईस लाख छियालीस हजार चार सौ अनुयोग द्वार संख्या त्पन्न होती है ॥ ११ ॥
द्वादशांग के समस्त पदों की संख्या का कथन सयकोडी वारुत्तर तेसोदीलक्खमंगगंथाणं । अट्ठावण्णसहस्सा पयाणि पंचेव जिणदिठ्ठ॥१२॥
शतकोटिः द्वादशोत्तरा ज्यशीतिलक्षाण्यङ्गग्रंथानां ।
अष्टापंचाशत्सहस्राणि पदानि पञ्चैव जिनदृष्टानि ॥ द्वादशाङ्गश्रुतपदानां संख्या ११२, ८३, ५८, ००, ५ ।
जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा दृष्ट ( कथित ) द्वादशांग के सर्व पद एक सौ बारह करोड़ तिरासी (व्यासी ) लाख अट्ठावन हजार पाँच होते हैं ॥ १२ ॥ सर्व द्वादशांग श्रुत के पदों की संख्या (११२, ८३, ५८, ००, ५) है ।
अंग बाह्य अक्षरों के प्रमाण का कथन पण्णत्तरि वण्णाणं सयं सहस्साणि होदि अट्टेव । इगिलक्खमट्ठकोडि पइण्णयाणं पमाणं हु ॥ १३ ॥
पञ्चसप्ततिः वर्णानां शतं सहस्राणि भवंति अष्टैव ।
एकलक्ष अष्टकोटयः प्रकीर्णकानां प्रमाणं हिं॥ अंगबाह्यश्रुताक्षरसंख्या , ०१, ०८, १७५ ।
आठ करोड़ एक लाख आठ हजार एक सौ पचहत्तर ( ८, ०१, ०८, १७५ ) प्रकीर्णक अंग बाह्य श्रुत के अक्षरों की संख्या है ।। १३ ।।
सर्व श्रुत अक्षर संख्या के प्रमाण का वर्णन पणदस सोलस पण पण णव णभ सग तिणि चेव सगं । सुण्णं चउचउसगछचउचउअठेक्कसव सुदवण्णा ॥ १४ ॥
पंचदश षोडश पंच-पंच नव नभः सप्त त्रीणि चैव सप्त । शून्यं चतुःचतुःसप्तषट्चतुःचतुरष्टकसर्वश्रुतवर्णाः॥
१८४४६७४४०७३७०९५५१६१५ १. तिणि पुस्तके पाठः।
२. सग इति पाठः पुस्तके। ३. सुणं पुस्तके पाठः।
४. सव इति पाठः पुस्तके ।