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द्वितीय अधिकार जिन बिम्ब, बिम्ब के आजुबाजु सनतकुमार और सण्हि यक्ष, श्रीदेवी, श्रुतदेवी, धूपघट, माला आदि का वर्णन तथा उनके तोरण प्रासाद आदि का कथन द्वीपसागर प्रज्ञप्ति के द्वारा होता है। द्वीपसागर प्रज्ञप्ति के पदों का प्रमाण बावन लाख छत्तीस हजार है।
व्याख्या प्रज्ञप्ति का कथन वक्खापण्णत्तीए तियसुण्णछत्तिचउडंका॥११॥ ८४३६०००।
व्याख्याप्रज्ञप्तौ त्रिकशून्यषत्रिकचतुरष्टाङ्काः॥ व्याख्याप्रज्ञप्ति परिकम के पदों का प्रमाण चौरासी लाख छत्तीस हजार है, अथवा तीन शून्य छह तीन चार आठ क्रम से है। ८४३६००० प्रमाण है ।। ११॥
जोऽरूविरूविजीवाजीवाईणं च दव्वणिवहाणं । भव्वाभब्वाणं पि य भेयं परिमाण लक्षणयं ॥ १२॥
या अरूपिरूपिजीवाजीवानां च द्रव्यनिवहानां ।
भव्याभव्यानामपि च भेदं परिमाणं लक्षणं ॥ सिद्धाणं खलु अणंतरपरंपरासिद्धिठाणपत्ताणं । अण्णेसि वच्छण्णं वित्थारं करेदि पण्णत्ती ॥१३॥ सिद्धानां खलु अनन्तरपरंपरासिद्धिस्थानप्राप्तानां ।
अन्येषां विस्तीर्ण विस्तारं करोति प्रज्ञप्तिः॥ पणपण्णत्तिपयाणि य णहाणि तिय पंचसुण्णइगिअट्ठ । इगिकोडिजुदाणि पुणो एवं परियम्म सम्मत्तं ॥१४॥
पंचप्रज्ञप्तिपदानि च नभांसि त्रीणि पंचशून्यकाष्टक ।
कोटियुतानि पुनरेवं परिकर्म समाप्तं ॥ पयाई १८१०५००० ।
यह व्याख्याप्रज्ञप्ति नामक परिक्रम चौरासी लाख, छत्तीस हजार पदों के द्वारा रूपी-अरूपी, जीव, अजीव द्रव्यों के समूह तथा भव्य-अभव्य जीवों के भेद परिमाण, लक्षण आदि का और अनन्त सिद्ध, परम्परा सिद्ध, स्थान प्राप्त सिद्ध तथा अन्य का भी विस्तार पूर्वक वर्णन करता है ॥१२॥
--- विशेषार्थ जैसे रूपी और अरूपी के भेद से अजीव द्रव्य दो प्रकार का है। धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये चार अजीव द्रव्य अरूपी ( स्पर्श, रस, गन्ध,