Book Title: Angpanntti
Author(s): Shubhachandra Acharya, Suparshvamati Mataji
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 211
________________ १८६ अंगपण्णत्ति .... (रविवार आदि), नक्षत्र (अश्विनी आदि) आदि काल विशेष में रागद्वेष नहीं करना काल सामायिक है। अथवा काल में जितने काल तक सामायिक की जाती है वह काल सामायिक है ॥५॥ णामभावस्स जीयादितच्चविसयुवयोगरूवस्स पज्जायस्स मिच्छादसणकसायादिसंकिलेसणियट्टी सामाइयसत्थुपयुत्तणामगो तप्पज्जायपरिणदं सामाइयं वा भावसामाइयं ॥६॥ नामभावस्य जीवादितत्त्वविषयोपयोगरूपस्य पर्यायस्य मिथ्यादर्शनकषायादिसंक्लेशनिवृत्तिः सामायिकशास्त्रोपयुक्तज्ञायकः तत्पर्यायपरिणतं सामायिकं वा भावसामायिकं ॥ ६॥ सामाइयं गदं-सामायिकं गतं वर्तमान पर्याय से युक्त द्रव्य को भाव कहते हैं। उसकी सामायिक भाव सामायिक है । उसके दो भेद हैं-आगमभाव सामायिक और नोआगमभाव सामायिक। नाम भाव जीवादि तत्व विषय (सामायिक विषयक शास्त्र) में उपयोग रूप जो पर्याय है सामायिक विषयक शास्त्र का ज्ञाता उसमें उपयुक्त है उसको आगमभाव सामायिक कहते हैं। नोआगमभाव सामायिक के दो भेद हैं-उपयुक्त और तत्परिणाम । जीवादि तत्व विषय रूप उपयोग का सामायिक विषयक शास्त्र बिना सामायिक के अर्थ में उपयुक्त जीव को उपयुक्त नोआगमभाव सामायिक कहते हैं तथा सामायिक के ताप का मिथ्यादर्शन कषाय आदि संक्लेश भावों से निवृत्त होना रूप पर्याय से परिणत आत्मा नोआगमभाव सामायिक है अथवा सर्व जीवों में मैत्री और अशुभ परिणाम का त्याग, भाव सामायिक है।॥ ६॥ इस प्रकार सामायिक का कथन जिसमें विशेष रूप से पाया जाता है उसको सामायिक प्रकोणक कहते हैं। ॥ इति सामायिक प्रकीर्णक समाप्त ॥ स्तवन प्रकीर्णक का कथन चउविसजिणाणं णामठवणदव्वलेत्तकालभावेहि । कल्लाणचउत्तीसादिसयाडपाडिहेराणं ॥१४॥ चतुर्विंशतिजिनानां नामस्थापनाद्रव्यक्षेत्रकालभावः। कल्याणचतुस्त्रिशदतिशयाष्टप्रातिहार्याणां ॥

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