Book Title: Angpanntti
Author(s): Shubhachandra Acharya, Suparshvamati Mataji
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 214
________________ तृतीय अधिकार १८९ को हरनेवाले, अपनी दिव्यध्वनि के द्वारा भव्य जीवों के कानों में साक्षात् सुखरूप अमृत की वर्षा करने वाले और एक हजार आठ लक्षणों के धारी प्रभु को नमस्कार हो, इस प्रकार स्तुति करना भी द्रव्य स्तवन है । अत्यन्त स्वरूप शरीर, सुरभित शरीर, पसीना नहीं आना, मलमूत्र का नहीं होना, प्रियहित वचन का होना, अतुल बलशाली, खून दूध के समान श्वेत होना, एक हजार आठ लक्षण का होना, समचतुरस्रसंस्थान और वज्रवृषभनाराचसंहनन ये दश जन्म के अतिशय होते हैं जहाँ पर प्रभु स्थित हैं वहाँ चारों दिशाओं में से सौ-सौ योजन पर्यन्त सुभिक्ष होना, चारों दिशा में में चार मुख का दिखना, अदया का अभाव, उपसर्ग नहीं होना, कवलाहार नहीं करना, सर्व विद्याओं का स्वामीपना, नख, केश का नहीं बढ़ना, शरीर की छाया नहीं पड़ना और आँखों की पलक नहीं गिरना ये दश अतिशय केवलज्ञान जन्य हैं । १ - अर्द्धमागधीभाषा का होना, २- परस्पर मित्रता, ३- दिशा और आकाश का निर्मल होना, ४-छहों ऋतुओं का फल-फूल एक साथ होना, ५ - गंधोदक की वृष्टि होना, ६ - पारी पृथिवी का हर्षित होना, ७ घटा का दर्पणवत् स्वच्छ होना, ८ - प्रभु के विहार समय चरणतल के नीचे कमलों की रचना होना, ९ - गगनांगण में जय-जय शब्द होना, १० - धर्मचक्र का आगे-आगे चलना, ११- मन्द मन्द सुरभित पवन का चलना, १२ - पुष्पवृष्टि होना और अष्टमंगल का होना आदि चौदह अतिशय देवकृत हैं । चौंतीस अतिशय का कथन करके स्तुति करना भी द्रव्य स्तवन है । अशोक वृक्ष, सिंहासन, तीन क्षत्र, भामण्डल, दिव्यध्वनि का खिरना, पुष्पवृष्टि का होना, यक्ष जाति के देवों द्वारा चौंसठ चमर ढोरना और दुंदुभिवादित्र बजना ये आठ प्रातिहार्य हैं । इनका वर्णन करके प्रभु का स्तवन करना, गुणों की मुख्यता से द्रव्य स्तवन है | जब भगवान् गर्भ में आते हैं तब देवांगनायें उत्सव मनाती हैं, छप्पन कुमारी देवियाँ माता की सेवा करती हैं । इत्यादि गर्भ कल्याण का वर्णन, जन्म के समय इन्द्र भगवान् को मेरु पर ले जाकर एक हजार आठ कलशों से अभिषेक करते हैं । एक लाख योजन प्रमाण ऐरावत हाथी के बत्तीस मुख, एक-एक मुख में आठ-आठ दाँत, एक-एक दाँत पर एक-एक सरोवर, एक-एक सरोवर में एक सौ आठ कमल, एक एक कमल के एक सौ आठ पत्ते, एक-एक पत्र पर एक-एक देवांगना नृत्य कर रही हैं । इन्द्र तांडव नृत्य करता है आदि जन्म कल्याण की शोभा का कथन करके, तप कल्याण

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