Book Title: Angpanntti
Author(s): Shubhachandra Acharya, Suparshvamati Mataji
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 219
________________ अंगपण्णत्ति १९४ आहार करने के बाद जो प्रतिक्रमण किया जाता है वह ईपिथिक प्रतिक्रमण है। इसमें मल-मूत्र आदि के दोषों का निवारण करने के लिए पच्चीस श्वासोच्छ्वास में कायोत्सर्ग किया जाता है। दीक्षा समय से लेकर संन्यास ग्रहण करने के सयम तक लगे हुए दोषों का निराकरण करने के लिए सर्व दोषों का निश्छल भावों से गुरु के समक्ष निवेदन करके सल्लेखना ग्रहण करना उत्तमार्थ प्रतिक्रमण है अथवा उत्तमार्थ ( उत्तम पदार्थ सच्चिदानन्द स्वरूप कारण समयसार आत्मा में स्थित मुनिवर कर्मों का घात करते हैं अतः ध्यान ही उत्तमार्थ प्रतिक्रमण है। नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा प्रतिक्रमण छह प्रकार का है। पाप के कारणभूत नाम के उच्चारण करने पर पाप परिणामों की निवृत्ति के लिए प्रतिक्रमण करना नाम प्रतिक्रमण है। सरागी देवों की स्थापना मुलक परिणामों से निवृत्ति होने को स्थापना प्रतिक्रमण कहते हैं अथवा आप्तभास, कुदेव आदि की प्रतिमाओं को नमस्कार, पूजा आदि करने का त्याग करना स्थापना प्रतिक्रमण है। ___ उद्गामादि दोष युक्त आहार, वसतिका, उपकरण आदि का त्याग करना द्रव्य प्रतिक्रमण है अथवा आलोचना, निन्दा, गर्हा रहित केवल प्रतिक्रमण शब्दों का उच्चारण करना द्रव्य प्रतिक्रमण है। पानी, कीचड़ आदि सचित्त द्रव्यों से युक्त क्षेत्र का परित्याग करना वा क्षेत्र सम्बन्धी कोई दोष उत्पन्न हुए दोषों का निराकरण करने के लिए प्रतिक्रमण करना क्षेत्र प्रतिक्रमण कहलाता है । रात्रि, तीनों संध्या काल तथा आवश्यक क्रिया काल में गमनागमन करने का त्याग करना काल प्रतिक्रमण है। आर्त्त-रौद्र ध्यान वा राग-द्वेष रूप परिणामों का त्याग करना भाव प्रतिक्रमण है अथवा आलोचना, निन्दा, गर्दा से युक्त होकर पुनः दोष न लगाना भाव प्रतिक्रमण है। अथवा मन, वचन, काय के भेद से प्रतिक्रमण तीन प्रकार का है कृत अपराधों का मन से त्याग करना मनः ( मानसिक ) प्रतिक्रमण है। हाय मैंने यह दुष्कृत किया है, पाप में प्रवृत्ति की है ऐसा मानसिक

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