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अंगपण्णत्ति ----- भी नौ-नौ प्रकार का है। जैसे उत्पाद हो चुका है, हो रहा है, होयेगा इत्यादि के भेद से नौ प्रकार का है। इसी प्रकार व्यय भी नौ प्रकार का है और ध्रौव्य भी नौ प्रकार का है। इस प्रकार उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य के ८१ भेद होते हैं। इन ८१ भेदों से युक्त द्रव्य का जो वर्णन करता है, वह उत्पादपूर्व है। यह उत्पादपूर्व दश वस्तुगत दो सौ प्राभतों के एक करोड़ पदों द्वारा जीव, काल और पुद्गल द्रव्य के उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य का वर्णन करता है।
अग्गस्स वत्थुणो पि हि पहाणभूदस्स णाणमगणंतं । सुअग्गायणीयपुव्वं अग्गायणसंभवं विदियं ॥३९॥
अग्रस्य वस्तुनोऽपि हि प्रधानभूतस्य ज्ञानं अयनं । स्वग्रायणीयपूर्व अग्रायणसंभवं द्वितीयं ॥ सत्तभ (स) यसुणयदुणयपंचत्थिसुकायछक्कदव्वाणं । तच्चाणं सत्तण्हं वण्णदि तं अत्थणियराणं ॥ ४० ॥
सप्तशतसुनयदुर्णयपंचास्तिकायषडद्रव्याणां । तत्त्वानां सप्तानां वर्णयति तदर्थनिकरणां॥
आग्रायणी पूर्व का कथन अग्र अर्थात् द्वादशांगों में प्रधान भूत वस्तु के अयन (ज्ञान ) को आग्रायण कहते हैं और द्वादशांगों में प्रधान वस्तु का कथन करना जिसका प्रयोजन है वह दूसरा आग्राणीय पूर्व है यह सात सौ सुनय, दुर्नय, पंचास्तिकाय, छह द्रव्य, सात तत्त्व रूप पदार्थों के समूह का वर्णन करता है ॥ ३९-४० ॥
भेए लक्खणणियरे छण्णवदीलक्खपयपमाणमिणं । वेंति जिणा तच्चत्थं गंणमह णरा सुभावेण ॥४१॥
भेदान् लक्षणनिकरान् षण्णवतिलक्षपदप्रमाणमिदं ।
जानन्ति जिनाः तत्त्वार्थ नन्नम्यत नराः! सुभावेन ॥ पुव्वंतं अवरंतं धुवाधुवच्चवणलद्धिणामाणि । अद्धव संपण हि च अत्थं भोमावयज्जं च ॥ ४२ ॥ पूर्वान्तं अवरांतं ध्रुवाध्रुवच्यवनलब्धिनामानि । अध्रुव संप्रणिधि च अर्थ भौमावयाद्यं च ॥