Book Title: Angpanntti
Author(s): Shubhachandra Acharya, Suparshvamati Mataji
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 206
________________ तृतीय अधिकार १८१ जिस चूलिका में भूमि में प्रवेश करने का वा शीघ्रगमन करने का, भूमि में जल के समान डुबकी लगाना आदि के कारण भूत मंत्र, तंत्र, तपश्चरण आदि का मनोज्ञ निरूपण है वह स्थलगता चूलिका है ॥ ३ ॥ तित्तियपयमेत्ता हु थलगयसण्णामचूलिया भणिया। मायागया च तेत्तियपयमेत्ता चूलिया णेया ॥४॥ तावत्पदमात्रा हि स्थलगतसन्नामचलिका भणिता। मायागता च तावत्पदमात्रा चूलिका ज्ञेया॥ मायारूवमहेंदजालविकिरियादिकारणगणस्स । मंततवतंतयस्स य णिरूवग्ग कोदुयाकलिदा ॥५॥ मायारूपेन्द्र जालविक्रियादिकारणगणानां । मंत्रतपस्तंत्राणां च निरुषिका कौतुका कलिता ॥ रूवगया पुण हरिकरितुरंगरुरुणरतरुमियवसहाणं । ससवग्यादीणं पि य रूवपरावत्तहेदुस्स ॥ ६॥ रूपगता पुनः हरिकरितुरुगरुरुनरतरुभृगवृषभाणां । शशव्याघ्रादीनामपि च रूपपरावर्तनहेतूनां ॥ तवचरणमतंततंयंतस्स परूवगा य वययसिला। चितकटुलेव्वुवक्खणणादिसु लक्खणं कहदि ॥ ७ ॥ तपश्चरणमंत्रतंत्रयंत्राणां प्ररूपका च वयय शिला। चित्रकाष्ठलेप्योत्खननादिसुलक्षणं कथते ॥ पारदपरियट्टणयं रसवायं धादुवायक्खणं च । या चूलिया कहेदि गाणाजीवाण सुहहेदू ॥८॥ पारदपरिवर्तनं रसवादं धातुवादाख्यानं च । या चूलिका कथते नानाजीवानां सुखहेतोः॥ आयासगया पुण गयणे गमणस्स सुमंततंतयंताई। हेदणि कहदि तवमपि तेत्तियपयमेत्तसंबद्धा ॥९॥ आकाशगता पुनः गमने गमनस्य सुमंत्रतंत्रयंत्राणि । हेतूनि कथयति तपोऽपि तावत्पदमात्रसम्बद्धा ।। इति पंचपयारचूलिया सरिसया गवा-इति पंचप्रकार चुलिका सदृशा गता।

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