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द्वितीय अधिकार
१७९ अथवा लोक का अर्थ जन समुदाय मज्जा, जल आदि अनेक अर्थ होते हैं। उनमें होने वाली सारभूत वस्तु का कथन इसमें पाया जाता है। इसमें दश वस्तु सम्बन्धी दोसौ-प्राभृत और एक करोड़ पाँच लाख पद हैं । ____इन चौदह पूर्वो को शुभचन्द्र आचार्य नमस्कार करने के लिए कहते हैं । मैं नमस्कार करता हूँ।
॥ लोकबिन्दुसार नामक पूर्व समाप्त हुआ। इदि णाणभूसणपट्टे सूरि सिरिविजयकित्तिणामगुरु । णमिऊण सूरिमुक्खो कहइ इणं सुद्धसुहचंदो ॥११७॥
इति ज्ञानभूषणपट्टे सूरि श्रीविजयकोतिनामगुरु ।
नत्वा सूरिमुख्यः कथयति इमां शुद्धशुभचन्द्रः॥ इदि अंगपण्णत्तीए सिद्धंतसमुच्चये बारहअंगसमरणावराभिहाणे विदियो अहियारो ॥ २॥ ___ इस प्रकार ज्ञानभूषण के पट्ट पर स्थित आचार्यश्री विजयकीर्ति नामक गुरु को नमस्कार करके आचार्यों में प्रधान शुद्ध शुभचन्द्र आचार्य इस अंगपण्णत्ति नामक ग्रन्थ को कहते हैं। अर्थात् इस ग्रन्थ की रचना विजयकीर्ति आचार्य के शिष्य शुभचन्द्र आचार्य ने की है ।। ११७ ॥
इस प्रकार अंगपण्णत्ति नामक सिद्धान्त समुच्चय में बारह अंग समरणवरभिधान में दूसरा ( पूर्व नामक ) अधिकार समाप्त हुआ।